000 07977nam a2200181Ia 4500
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082 _aH 363.15 MIT
100 _aMitra,Nilina
245 0 _aPanchayat ke liye samudayik swasthay pustika / edited by Amar Singh Sachan
245 0 _nv.1995
260 _aDelhi
260 _bWalentry Health Association
260 _c1995
300 _a169p.
520 _aआजादी की लड़ाई में ज्यादातर लोगों का सपना एक ऐसे भारत के निर्माण का था, जिसके विकास एवं सत्ता की शुरूआत गांवों से होनी थी। मगर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संसार भर में आए तेज बदलाव एवं मशीनी विकास की आंधी की चपेट में भारत जैसे कृषि प्रधान देश भी नहीं बच सके। लेकिन प्रजातंत्र की व्यवस्था से गांव के अपने विकास का पौधा अवश्य पनपता रहा। पंचायती राज व्यवस्था की सही मायने में शुरूआत कुछ राज्यों से हुई और उसके सुपरिणाम देखकर भारत सरकार ने भी 'पंचायती राज अधिनियम 1992' के द्वारा उस पौधे को एक वृक्ष के रूप में रोप दिया और इसके तहत सारे राज्यों में तीन स्तरीय पंचायती राज प्रणाली अनिवार्य बना दी गई। इस संशोधन अधिनियम ने जहां गांवों के स्वतः विकास का मार्ग खोला, वहीं हरीजन, गरीब तबके और महिलाओं को प्रर्याप्त मात्रा में आरक्षण की सुविधा प्रदान कर, उनके हकों को सच्चाई में बदलने का मार्ग साफ कर दिया। अब उपेक्षित एवं गरीब लोग भी अपने हितों की बात कहने व समर्थन देने का हक पा गए और इसके लिए उन्हें किसी मुखिया या जमींदार (ठाकुर साहब) का मुँह ताकने की ही जरूरत नहीं रही। निश्चय ही आज की यह धीमी शुरूआत कल की सही दिशा साबित होगी। 'पंचायत राज अधिनियम 1992' में दिए गए अधिकारों तथा इस पुस्तक की जानकारी के माध्यम से पंचायतें ग्रामीण उद्योग धंधों एवं स्वास्थ्य सफाई की व्यवस्था के लिए योजनाएं तथा अपनी प्राथमिकताएं तय कर सकें। वे यह भी निर्धारित करने में सक्षम होंगी कि उनके गांव और समुदाय के लिए क्या सही है और क्या नहीं ? यदि ध्यान से देखा जाए तो रोटी, कपड़ा और मकान की तरह स्वास्थ्य भी एक अनिवार्य घटक है। यदि ग्रामवासी स्वस्थ होंगे तो उनके कार्य, श्रम एवं बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होगी और इस प्रकार से वे लोग भी देश की प्रगति की मुख्य धारा में शामिल हो सकेंगे। इस पंचायती राज के आने के साथ साथ स्वैच्छिक संस्थाओं या गैर सरकारी संगठनों की भूमिका में भी थोड़ा बदलाव अवश्य आएगा। अब वे "ऊपर से नीचे की " सरकारी शैशैली को छोड़कर "नीचे से ऊपर की" व्यवस्था में सार्थक भूमिका निभाकर ठोस परिणाम जल्दी प्राप्त कर सकते हैं। ग्रामवासियों के साथ उनकी योजनाओं में शामिल होकर और सही रूप से उनको भागीदार बनाकर सामुदायिक स्वास्थ्य या विकास के लक्ष्य को पा सकते हैं। हमें आशा है इस क्रम में यह पुस्तक एक मील का पत्थर साबित होगी और हमारे ग्रामीण भाइयों को स्वास्थ्य एवं विकास की योजनाएं बनाने, कार्यान्वयन करने तथा उनकी निगरानी रखने में मददगार साबित होगी। साथ ही पंचायत सदस्यों को गैर सरकारी या स्वैच्छिक संगठनों के साथ मिलजुल कर काम करने का मार्ग दिखाएंगी। इस पुस्तक के अंत में उन योजनाओं एवं क्रियाकलापों की जानकारी भी दी गई है जिन्हें पाने का हक पंचायतों को है और संविधान के द्वारा भी यह सुविधा दी जा चुकी है। जिनके बारे में विस्तार से जानकारी के लिए आप स्थानीय जिलाधिकारी एवं प्रदेश आयुक्त को सीधे लिख भी सकते हैं। इस पुस्तक का मुख्य उददेश्य पंचायत सदस्यों की स्वास्थ्य एवं स्वैच्छिक संस्थाओं के प्रति समझ बूझ बढ़ाना है तथा सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने एवं आत्मनिर्भरता की भावना पैदा करने के बारे में जानकारी देना भी है। इसके अलावा इस पुस्तक से युवक मंगल दल, महिला दल, ग्राम स्वास्थ्य कार्यकर्ता, स्कूल शिक्षक तथा स्थानीय नेता आदि भी पढ़कर निश्चय ही, स्वास्थ्य एवं विकास के बारे में व्यापक जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
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