000 02299nam a2200181Ia 4500
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008 200204s9999 xx 000 0 und d
082 _aH 363.73 BIS
100 _aBist, Sujata
245 0 _aPryawaran prdushan aur ikkesveen sadee
245 0 _nv.1992
260 _aNew Delhi
260 _bTaxashila Prakashan
260 _c1992
300 _a126p.
520 _aआज प्रायः कहा जाता हैं कि हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर रहे हैं । हम इसे कुछ ऐसे लहजे में कहते हैं जैसे इक्कीसवीं सदी अपने द्वार पर बन्दनवार तोरण लगाकर हमारे स्वागत के लिए खड़ी है। हमें द्वार लांघना मात्र है और हम सपनों की दुनिया में पहुंच जाएंगे किन्तु सचाई यह है कि आने वाली सदी में हमें कांटों पर चलना पड़ सकता हैं । हम पर्यावरण का विनाश कर चुके हैं । वह विषाक्त हो चला गया है हमारे ऊर्जा के स्रोत, वन, जल, खनिज, भूमि की उत्पादन क्षमता समाप्त होती जा रही है दूसरी ओर जनसंख्या का बोझ बढ़ता जा रहा है । अगर हमने उपाय नहीं किए तो हमारी दुर्गति अवश्यं भावी है । यह पुस्तक भविष्य की उसी चिन्ता को ध्यान में रखकर लिखी गई है किन्तु आशा की किरण भी है अगर उपाय किए जाएं तो नई सदी को हम सँवार भी सकते हैं पुस्तक में इस आशा को भी जगाया गया है ।
942 _cB
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