000 | 04389nam a2200169Ia 4500 | ||
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999 |
_c44313 _d44313 |
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005 | 20220804160008.0 | ||
008 | 200204s9999 xx 000 0 und d | ||
082 | _aH 491.43 DAK | ||
100 | _aGoswami, Krishnakumar | ||
245 | 0 | _aDakikhani bhasha aur sahitya vishleshan ki dishayen | |
260 | _aNew Delhi | ||
260 | _bNational Publishing House | ||
260 | _c1991 | ||
300 | _a176 p. | ||
520 | _aभारत बहुभाषी, बहुजातीय र सांस्कृतिक है उसमें भार तीयता अनवरत रूप से एक साथ प्रवाहित होती है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि भारत की इन भाषाओं और साहित्य का अध्ययन किया जाए ताकि उनमें सार्वभौमिक तत्वों की खोज हो सके जो भारत को एक सूत्र में बाँधने में सहायक हैं। इसी संदर्भ में दक्षिण भारत में प्रयुक्त दक्खिनी भाषा और उसके साहित्य का मूल्यांकन करने के लिए 31 मार्च और 1 अप्रैल, 1989 को 'दक्खिनो भाषा और साहित्य विश्लेषण की दिशाएँ' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वास्तव में दक्खिनी के ऐतिहासिक और संद्धांतिक परिप्रेक्ष्य में काफी शोध कार्य हुआ है जिनमें डॉ. श्रीराम शर्मा का नाम उल्लेखनीय है हालांकि पं. राहुल सांस्कृत्यायन, डॉ. बाबूराम सक्सेना आदि ने भी इस विषय पर अपनी लेखनी उठाई है। डॉ. शर्मा ने 'दक्खिनी हिन्दी का साहित्य', 'दक्सिनी का उद्भव और विकास', 'दक्खिनी का पथ और गद्य', 'अली आदिल शाह का काव्य संग्रह', 'सबरस' आदि ग्रंथों के बालोचनात्मक अध्ययन से दक्खिनो भाषा और साहित्य में अत्यधिक योगदान किया है। इसके अतिरिक्त देवीसिंह चौहान, मसूद हुसेन खां, ज्ञानचंद जैन नसीरुद्दीन हाशमी, सईदा जाफर, जीनत साजदा, परमानंद पांचाल, विमला मदान, बदही हुसैनी आदि के नाम भी दक्खिनी भाषा और साहित्य के संदर्भ में विशेष स्थान रखते हैं। विदेशी विद्वानों में अमेरिका की रूथ लेला श्मिट तथा जापान के ताकाहाश अकिरा के दक्खिनी हिन्दी या उर्दू के भाषा विश्ले यण पर किए गए अनुसंधान कार्य को विस्मृत नहीं किया जा सकता। किंतु अभी भी दक्खिनी का विशाल साहित्य अनछुआ पड़ा है जिस पर शोधार्थियों और विद्वानों का ध्यान नहीं गया है। यह संगोष्ठी एक प्रेरक तत्व है जिसमें दक्खिनी भाषा और साहित्य के विविध पक्षों का उद्घाटन और मूल्यांकन करने का प्रयास किया गया है | ||
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_cB _2ddc |