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999 _c41191
_d41191
005 20220808120847.0
008 200204s9999 xx 000 0 und d
082 _aH 491.43 SIN
100 _aSinha, Sukh Sagar
245 0 _aSamsyaon ke salib par tangi rajbhasha hindi
245 0 _nv.1989
260 _aGorakhpur
260 _bVaishali Prakaskan
260 _c1989
300 _a143 p.
520 _aराजभाषा हिन्दी के प्रगामी प्रयोग की दयनीय स्थिति को देखते हुए एक संवेदनशील आस्थावान सामान्य भारतीय नागरिक के मन के क्लेश को प्रस्तुत पुस्तक में संग्रहित निबन्धों के लिपिबद्ध करने का प्रयास किया गया | उद्देश्य यह है कि राजभाषा के अहम प्रश्न के हल का भार मात्र सरकार के भरोसे न छोड़ा जाय बल्कि देश की भावात्मक एकता और अखण्डता में विश्वास रखने वाले आम नागरिक अपने अन्तर की चेतना जगाए और अपने स्वयं के काम-काज में निरपवाद रूप से हिन्दी के प्रयोग का संकल्प लें। जिस प्रकार अंग्रेजी राज के विरूद्ध संगठित होकर हिन्दी भाषी क्षेत्र ने देश को नेतृत्व प्रदान किया था उसी प्रकार यदि अंग्रेजी के विरूद्ध भी हिन्दी भाषी क्षेत्र के लोग जाग्रत हो जाय और अपना सारा काम-काज चाहे वह सरकारी स्तर पर हो अथवा गैर सरकारी स्तर पर मात्र हिन्दी में करना प्रारम्भ कर दें तो राजभाषा के प्रयोग के मार्ग में उपस्थित सारी समस्यायें सुलझ जाय । सन्तोष की बात है कि हिन्दी को अपने आप तक के सुदीर्घ विकास खण्ड में अनेक अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ा है, विदेशी शासकों के कोप का भाजन बनना पड़ा है किन्तु सारे झंझावातों को झेलकर भी यह पानी पर तेल की तरह सहज रूप में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर फैलती जा रही है।
650 _aHindi language
942 _cB
_2ddc