000 | 04382nam a2200193Ia 4500 | ||
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999 |
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005 | 20220803144907.0 | ||
008 | 200204s9999 xx 000 0 und d | ||
020 | _a8171190146 | ||
082 | _aH 368.4 BHA | ||
100 | _a Bhattacharya,S.K | ||
245 | 0 | _aSamaj-raksha : bhartiya paripeksh mein | |
245 | 0 | _nv.1990 | |
260 | _aNew Delhi | ||
260 | _bRadhakrishna | ||
260 | _c1990 | ||
300 | _a204p. | ||
520 | _aअपराध और दण्ड की युगों पुरानी अवधारणा में अब परिवर्तन आ चुका है। अब यह महसूस किया जाने लगा है कि व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध बहुत से कारकों का परिणाम होता है, जो प्रायः उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। इसके अतिरिक्त अपराधी समुदाय या समाज का ही बनाया हुआ होता है और इस प्रकार अपराध की समस्या से निपटना भी समाज या समुदाय का ही काम है । सभ्य व्यक्तियों के समूह के रूप में समाज ने कितनी प्रगति की है, इसका पता हमें इस बात से चलता है कि वह अपने कमजोर व अरक्षित वर्गों जैसे बालक, किशोर, महिला, वृद्ध तथा अन्य ऐसे सदस्यों, जो नशीले पदार्थों, अपराध तथा आर्थिक व नैतिक विपन्नताओं के शिकार होते हैं, के प्रति कितनी हमदर्दी रखता है। इन वर्गों के लिए किये जाने वाले निवारक तथा सुधारात्मक उपायों को समाज रक्षा के रूप में जाना जाता है । समाज-रक्षा का विचार नया नहीं बल्कि बहुत प्राचीन है । हमारे युग में इसने एक नया रूप ले लिया है। आज कल ऐसे उपायों को जेल अधिनियम, बालक अधिनियम, अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, स्त्री तथा नैतिक अपराध दमन अधिनियम, भिक्षावृत्ति विरोधी अधिनियम आदि के अन्तर्गत क्रियान्वित किया जाता है। इस पुस्तक का उद्देश्य समाज रक्षा' शब्द के महत्व पर ध्यान केन्द्रित करना और अज्ञान या जानकारी के अभाव में, 'समाज रक्षा' शब्द के बारे में प्रचलित अनेक गलत धारणाओं को दूर करना है। लेखक का समाज रक्षा कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में आने वाली समस्याओं से निपटने का सम्बा व्यक्तिगत अनुभव और व्यावहारिक अन्तद् ष्टि है। हमें विश्वास है, इस बहुमूल्य पुस्तक से न केवल अपराध शास्त्र और सुधारात्मक प्रशासन के छात्र तथा दंड न्याय प्रणाली से जुड़े हुए लोग बल्कि समाज विज्ञानी, सामाजिक कार्यकर्त्ता, तथा मनोज्ञानिक भी लाभ उठा सकेंगे । | ||
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