000 | 03578nam a2200169Ia 4500 | ||
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005 | 20220727211331.0 | ||
008 | 200204s9999 xx 000 0 und d | ||
082 | _aH 410 BRI | ||
100 | _aBrijmohan | ||
245 | 0 | _aArthvigyan | |
260 | _aNew Delhi | ||
260 | _bRajkamal Prakashan | ||
260 | _c1989 | ||
300 | _a121 p. | ||
520 | _aअर्थविज्ञान भाषा-विज्ञान की ही एक शाखा है। व्यावहारिक भाषायी ज्ञान की दृष्टि से मानव जीवन में इसकी एक अहम भूमिका है। हिंदी में इस विषय पर बहुत कम काम हुआ है. इसलिए सुविख्यात गणितज्ञ और भाषाविद् डॉ. ब्रजमोहन की इस पुस्तक का महत्त्व स्वयंसिद्ध है। डॉ. बृजमोहन ने पूरी पुस्तक को बारह अध्यायों में बाँटा है, जिनके अंतर्गत तर्कवाक्य, शब्द और पद, वाक्यार्थ और गुणार्थ, वाक्य धर्म, परिभाषा, तर्क, अर्थ और प्रतीति, शब्दार्थ- संबंध, अर्थ-निर्णय, शब्दोक्तियाँ तथा अर्थ परिवर्तन आदि पर विस्तार से विचार किया गया है। इस प्रक्रिया में भाषा प्रयोग के अनेकानेक रहस्य और उसकी बारीकियाँ हमें आनंदित और अभिभूत तो करती ही हैं, हमारे भाषायी ज्ञान को व्यावहारिक और तार्किक भी बनाती हैं। पाठकों के लिए ऐसा अवसर जुटाते हुए लेखक ने पूरा ध्यान रखा है कि उसकी बात विषयगत दुख्हता के गुंजलक में उलझकर न रह जाए। वही कारण है कि पुस्तक का हर अध्याय रोचक उद्धरणों, कवितांशों, किवदंतियों और मनोरंजक उक्तियों से परिपूर्ण है, जिनसे प्रत्येक संबद्ध शब्द एक नई अर्थ दीप्ति से भर उठता है। अनेक रेखांकनों, गणितीय त्रिभुजाकारों और तालिकाओं आदि का प्रयोग भी इसी उद्देश्य से हुआ है। कहना न होगा कि यह अनूठी पुस्तक ऐसे सजग और वास्तविक पाठकों / विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो भाषा को एक जीवित सामाजिक सांस्कृतिक इकाई मानते हैं; यानी उसे शब्दकोशों तक ही सीमित नहीं समझते | ||
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_cB _2ddc |