000 02898nam a2200169Ia 4500
999 _c40465
_d40465
005 20220802152606.0
008 200204s9999 xx 000 0 und d
082 _aH 491.2 IYE
100 _a Iyer, K. A. S.
245 0 _aBhartrihari: prachin teekauon ke prakash mein vyakyapadiya ka ek adhyan
260 _aJaipur
260 _bRajsthan Hindi Grantha Akademi
260 _c1981
300 _a456 p.
520 _aभर्तृहरि की कृति वाक्यपदीय में भाषा के स्वरूप का दार्शनिक विवेचन प्रस्तुत किया गया है । भाषा-विज्ञान और भाषा दर्शन पर प्राचीन भारत में हुए चिन्तन की सूक्ष्मता और मार्मिकता श्रद्वितीय है, यह आज सर्वत्र स्वीकार किया जा रहा है। इसमें भी वाक्यपदीय की गरिमा सर्वोपरि मानी गई है इस कृति पर अनेक प्राचीन आचार्यों ने भाष्य और टीकाएं भी लिखीं जिनका अपना स्वतन्त्र महत्त्व है इधर 20वीं शताब्दी के यूरोप अमरीका में भाषा पर दार्शनिक चिंतन की ओर विशेष रुचि बढ़ी, तब विद्वानों का ध्यान वाक्यपदीय की ओर भी प्राकृष्ट हुआ और पिछले तीन-चार दशकों में इस ग्रंथ पर कितने ही लेख देशी-विदेशी लेखकों ने लिखे इस परिस्थिति में सुब्रह्मण्य अय्यर ने इस महद ग्रंथ का अंग्रेजी में अनुवाद किया और इसमें ता इसके भाष्यों में प्रतिपादित दार्शनिक विचारों पर एक पृथक् विवेचनात्मक ग्रंथ भी लिखा। प्रस्तुत ग्रंथ इसी ग्रंथ का अनुवाद है । प्राचीन भारत में भाषा विष यक चार मुख्य संप्रदाय रहे हैं वैयाकरण, मीमांसक, नैयामिक और बौद्ध | वाक्यपदीय व्याकरण-संप्र दाय की अन्यतम कृति है ।
942 _cB
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