000 05679nam a2200181Ia 4500
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008 200202s9999 xx 000 0 und d
082 _aH 370.15 DAV
100 _aDave,Indra
245 0 _aShiksha ke manovegyanik aadhar
245 0 _nv.1971
260 _aJaipur
260 _bRajasthan Hindi Grantha Akademi
260 _c1971
300 _a426p.
520 _aभारतीय भाषाओं को उच्च शिक्षा का माध्यम बनाने की राष्ट्रीय नीति को शीघ्र क्रियान्वित करने के लिए सन् १९६८ में भारत सरकार ने एक बृहत् योजना का सूत्रपात किया था जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रदेशों में ग्रन्थ अकादमियों की स्थापना कर उनके माध्यम से विश्वविद्यालयीय शिखर पर विभिन्न विषयों में महत्वपूर्ण एवं उपयोगी पुस्तकों के मौलिक लेखन और अन्य भाषाओं से ग्रन्थानुवाद कराने का कार्यक्रम स्वीकृत हुआ था। भारत सरकार के शिक्षा एवं युवक सेवा मंत्रालय ने चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के घाव इसके लिए मत-प्रतिशत अनुदान देना स्वीकार किया । राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी की स्थापना भी इसी उद्देश्य की पूर्ति एवं योजना को क्रियान्वित करने के लिए की गयी थी। प्रस्तुत ग्रन्थ "शिक्षा के मनो वैज्ञानिक आधार" का प्रकाशन भी इसी योजना के अन्तर्गत हुआ है । आधुनिक शिक्षाशास्त्रियों ने गुष्ठु शिक्षा-पद्धति के लिए अनेक आधार प्रस्तुत किये है। शिक्षा का उद्देश्य वस्तुतः केवल 'साक्षरता' या 'गंजरिक उपाधियां प्राप्त करना ही नहीं है। भारतीय मनीषियों ने 'विद्या' की महत्ता बताते हुए इसे मनुष्य । के जीवन, व्यक्तित्व और का हेतु गिना है। शिक्षा के विभिन्न आधारों में एक महत्वपूर्ण आधार उसका 'मनोवैज्ञानिक' स्वरूप है। आधुनिक शिक्षाशास्त्रियों और मनोविज्ञान वेत्ताओं ने इस ओर महत्वपूर्ण स्थापनाएं प्रस्तुत की हैं। इटली के प्रसिद्ध विद्वान गुईजोट का कथन है कि शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य “मनुष्य के समग्र व्यक्तित्व का विकास है" अर्थात् "जहां एक विद्यालय खुलता है वहीं एक कारावास भी बन्द होता है ।" डा० इन्दु दवे द्वारा लिखित प्रस्तुत ग्रन्थ शिक्षा के मनोवैज्ञानिक आधारों का सम्यक विवेचन करता है। डा० श्रीमती दवे भारत की प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री हैं। उन्होंने परिश्रम और अध्यवसाय से प्रस्तुत ग्रन्थ लिखकर राजस्थान हिन्दी प्रत्थ अकादमी को अपना अमूल्य सहयोग दिया है, जिसके लिए धकादमी उनकी कुश है। अकादमी शिक्षा से संबंधित और भी अनेक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी ग्रन्थ प्रकाशित कर रही है। प्रस्तुत ग्रन्थ उसी श्रृंखला की एक कड़ी है । उनकी मूलभूत स्थापनाएं जितनी उपयोगी है उतनी ही 'व्यावहारिक' भी है। राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी की मान्यता है कि प्रस्तुत ग्रन्थ शिक्षा की मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि को समझाने में पूर्ण रूप से समर्थ एवं सहायक होगा ।
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