000 04264nam a2200181Ia 4500
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008 200202s9999 xx 000 0 und d
082 _aH 491.432 MIS
100 _aMisra, Bhagirath
245 0 _aKavya-manisha
245 0 _nv.1969
260 _aLucknow
260 _bHindi Samiti
260 _c1969
300 _a346 p.
520 _aइधर कुछ दिनों से हिन्दी काव्य-चेतना काव्य मूल्यांकन के नये प्रकाश को खोज रही है। हिन्दी कविता के नवीन क्षितिजों के उद्घाटन से ऐसा लगने लगा कि प्राची दिशा को आलोकित करने वाला सूर्य इन्ह प्रकाश देने में शायद सक्षम नहीं है। अतः नवीन क्षितिजों को नये दिशाssलोकों की आवश्यकता है उनके लिए अनेक प्रकार के संकेत भी हमारे सामने आये। इतना ही नहीं, स्थिति यह हो गयी कि काव्य-शास्त्रीय चेतना को नये दिनमान ढूंढ़ने पड़े। हिन्दी-समीक्षा क्षेत्र में बहुत दिनों से यह चर्चा चलती आ रही है कि हिन्दी का अपना समीक्षा शास्त्र या काव्यशास्त्र होना चाहिए। 'हिन्दी काव्यशास्त्र का इतिहास' और 'कव्यशास्त्र' ग्रंथों को लिखने के अनन्तर मुझे ऐसा लगा कि बदले हुए परिवेश में और बदलती हुई काव्य-चेतना के साथ पुराने लक्षणों और मानदण्डों के आग्रह द्वारा न्याय नहीं किया जा सकता । काव्य-सिद्धांत-संबंधी ग्रंथों में भी अपने-अपने मतों का आग्रह है। अतः प्राचीन और अर्वाचीन काव्य-चेतना को समेटकर काव्य की कसौटी या समीक्षा- शास्त्र को नये रूप में तैयार करने की आवश्यकता है और इस दिशा में प्रयत्न प्रारम्भ करना चाहिए। इस निमित्त का प्ररक कारण उत्तर प्रदेश की हिन्दी समिति बन गयी। उसके सचिव तथा अध्यक्ष एवं विशेष रूप से गुरुवयं डा० दीनदयालु जी गुप्त की प्रेरणा और संयोजना के फलस्वरूप मेने इस हिंदी काव्यशास्त्र' ग्रंथ के लेखन का गुरुतर भार स्वीकार किया। परन्तु किन्हीं परिस्थितियों के फलस्वरूप इसे पूरा करने में आवश्यकता से अधिक विलम्ब लग गया और आज यह ग्रंथ पूरा हो पाया है। इस बीच मुझे यह भी लगा कि हिन्दी काव्यशास्त्र' सदृश नाम वाले बहुत से ग्रंथ हैं, अतः इसका नाम कुछ भिन्न रखा जाय। अतः मैन इसे 'काव्य मनीषा' नाम दिया है।
942 _cB
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