000 | 03523nam a22001697a 4500 | ||
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005 | 20250930155234.0 | ||
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082 | _aH 891.43 AKK | ||
100 |
_aAkk, Oma The _915467 |
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245 | _aHum Ikkisavin Sadi Se Aate Hain : Mahangi Kavitaon Ka Ek Chayan | ||
260 |
_aNew Delhi _bVani Prakashan _c2025 |
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300 | _a188 p. | ||
520 | _aकुल मिलाकर इनकी कविताएँ हमें इस बात के प्रति आश्वस्त रखती हैं कि कविता हमारे यहाँ हर जीवन प्रसंग पवन-पानी की तरह परिव्याप्त है तो जीवन में रस और ध्वनि के सोते सूखेंगे नहीं और पोएटिक जस्टिस की तलाश एक बड़ा प्रश्न हमेशा ही बनी रहेगी। —अनामिका *** इसे मात्र कविता-संग्रह कहना भी वैसे बहुत उचित नहीं है, मैं इसे वाणी के उद्वेग का संग्रह कहना चाहूँगा! इसमें एक सी तिरपन कविताएं हैं और तिरालिस चित्र हैं। चित्र में अनेक रूपाकार हैं जिनमें बनारस के रंग अधिक हैं। यदि किसी एक भूभाग की कविताएँ अधिक हैं तो वह बनारस का ही आध्यात्मिक नैतिक सांसारिक भूगोल है! यदि विस्मिल्लाह भी आते हैं तो बनारस के रंग में रंग कर। कविता में आया चाँद भी एक बनारसी ठाठ से आकाश में भटकता है। जैसे आकाश चन्द्रमा की काशी हो! स्वामी ओमा द अक् की इन कविताओं में पीड़ा और लास्य ऐसे गुंथे हैं कि उनको अलग करके देखना ऐसे ही होगा जैसे गौरैया और उसके पंख को अलग करके उसकी उड़ान को देखना। —बोधिसत्व *** ओमा द अक एक स्वतन्त्रता इकाई हैं। स्वामी हैं, पर अपने; जिसका कोई मठ नहीं, समवाय नहीं, महन्त नहीं, पूजा-अर्चना नहीं, कोई भजन-कीर्तन मंडली नहीं, कोई घंट-घड़ियाल नहीं, फूल-पत्तियाँ नहीं, रामनामी या भगवा नहीं। वे एक सुदर्शन प्रतिमूर्ति तो हैं, अपनी तरह के आभरण में भी रहते हैं पर यह सब उस चीवर-सा ही है जिसमें किसी गैरिकवसना का मन रमता है। —ओम निश्चल | ||
650 |
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