000 05423nam a22001697a 4500
003 0
005 20250930154847.0
020 _a9789369442638
082 _aH 891.4203 GYA
100 _aGyanranjan
_915465
245 _aHindi Ke Namavar Namvar Singh
260 _aNew Delhi
_bVani Prakashan
_c2025
300 _a279 p.
520 _aनामवर सिंह बुनियादी रूप से 'नयी आलोचना' के आलोचक हैं। 'नयी कविता' के भीतर छायावादी संस्कार और प्रगतिशील संस्कारों का जो संघर्ष मौजूद रहा, उनकी नयी आलोचना का मूल प्रस्थान इसी संघर्ष की पहचान से शुरू होता है। 'कविता के नये प्रतिमान' में वे उसे हर जगह दुहराते नज़र आते हैं। वे कहते हैं, 'आज नये-से-नये प्रतिमान के लिए सबसे बड़ी चुनौती छायावादी संस्कार हैं।' उन्होंने अपनी पुस्तक 'कहानी : नयी कहानी' में भी स्वीकृत मान्यताओं के ख़िलाफ़ संघर्ष की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। नामवर सिंह के आलोचनात्मक विवेक के निर्माण में जातीय परम्परा का भी योग है। वे अक्सर इस परम्परा को दूसरी परम्परा कहते हैं। देखना चाहिए कि यह दूसरी परम्परा है क्या चीज़ ? दूसरी परम्परा है-जीवन और जगत् के अर्थ, उसकी जटिलताएँ और काव्य की रचनात्मकता का साक्षात्कार करने की। नामवर सिंह की आलोचना-पद्धति में विश्लेषण का बहुत महत्त्व है। अर्थ के लिए यह ज़रूरी है। वे कई कोणों से वर्गीय दृष्टि के साथ सिद्ध करते हैं कि कैसे कोई प्रतिमान मूल्य-दृष्टि के आलोक में अपना अर्थ प्रतिपादित करता है। देखें तो, नामवर सिंह की काव्य-समीक्षा, बल्कि पूरा समीक्षा-कर्म मार्क्सवादी दृष्टि से साहित्य केन्द्रित है। वे वाक्-परम्परा के शोधार्थी रहे। वे आस्वादनों के प्रतिनिधि बनकर सक्रिय रहे। वैचारिक युद्ध के लिए उन्होंने यही मैदान चुना। उनकी युद्ध-शैली महाभारत की रही-युद्ध और जीवन में एक-दूसरे से संवाद। उन्होंने व्यवस्थित सिद्धान्त-निरूपण नहीं किया। प्रचलित सिद्धान्तों की व्याख्या करते वे अपने विश्वासों को व्यक्त करते रहे। उन्हें सूत्रबद्ध करके उनकी आलोचना के सिद्धान्त का संग्रह सम्भव है। नामवर सिंह की आलोचना का क्षेत्र अपेक्षाकृत अकादमिक और बौद्धिक है। उसमें आस्था और आशंका की द्वन्द्वात्मकता बहुत घनीभूत है। अलग से पहचानी जाने वाली आस्था को उन्होंने नकारा। उन्होंने एक जगह हजारीप्रसाद द्विवेदी के फक्कड़ स्वभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि यह स्वभाव निबन्ध के योग्य होता है। गौर से देखें तो यह उत्तराधिकार नामवर जी में भी है। यही कारण कि उनकी आलोचना निबन्धों में है। निबन्धों की रचनात्मक शर्त उनकी आलोचना में है। कहने की आवश्यकता नहीं कि निबन्ध स्वभावी आदमी में ही मिलता है।
650 _aHindi Sahitya
_915466
942 _cB
999 _c359604
_d359604