000 | 01768nam a22001697a 4500 | ||
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003 | 0 | ||
005 | 20250929110551.0 | ||
020 | _a9789369441624 | ||
082 | _aH 891.43 LAT | ||
100 |
_aLatif, Shah Abdul _915413 |
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245 | _aKahe Latif | ||
260 |
_aNew Delhi _bVani Prakashan _c2025 |
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300 | _a151 p. | ||
520 | _aहृदय से पहुँचो साजन तक पाँव से पैदल करना बेकार पहाड़ों में न ढूँढ़ो उसके निशान ससुइ, चाल चलो रुहानी ""सिन्धी होने का मतलब है 'शाह जो रिसालो से वाक़फ़ियत"", अनुवादक रीटा कोठारी लिखती हैं। 'रिसालो' सिन्ध के सूफ़ी सन्त-कवि शाह अब्दुल लतीफ़ (1689-1752) का दीवान है; सूफ़ी साहित्य का अमूल्य मोती है रिसालो। इसकी उपज सूफ़ी विचारधारा से हुई है, किन्तु ये सिन्ध की मिट्टी-उसकी लोक कहानियाँ, पेड़-पौधे, जंगल और जानवर-का आईना भी है। सिन्धी से हिन्दी में अनूदित, प्रस्तुत है रीटा कोठारी की क़लम व अनुभव से, रिसाले के बैतों (पद्य) का एक अनूठा संग्रह : 'कहे लतीफ़’। | ||
650 |
_aHindi Kavita _915414 |
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942 | _cB | ||
999 |
_c359590 _d359590 |