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082 _aH KAR J
100 _aKardam, Jaiprakash
_915391
245 _aCharath Bhikkhave
260 _aNew Delhi
_bVani Prakashan
_c2025
300 _a112 p.
520 _a‘चरथ भिक्खवे’ महामानव गौतम बुद्ध के जीवन पर केन्द्रित नाटक है, जिसमें उनके जीवन के उन पक्षों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है जो विश्व को अहिंसा, करुणा, प्रेम और सह-अस्तित्व का सन्देश देते हैं। तीर से घायल पक्षी के जीवन रक्षा के द्वारा प्राणी मात्र के प्रति सिद्धार्थ गौतम के मन में उपजी करुणा से नाटक का प्रारम्भ तथा दुनिया को दुखों और क्लेश से मुक्त कर सुखी बनाने हेतु तथा मानवता के हितार्थ लोक में भ्रमण करने के आदेश के साथ नाटक का अन्त होता है। बुद्ध ने अपने भिक्षुओं को कहा था — 'चरथ भिक्खवे चारिकं, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय, लोकानुकम्पाय'। उनके ये शब्द भले ही भिक्षुओं को सम्बोधित थे किन्तु वास्तव में यह सम्पूर्ण मानव-समाज के लिए उनका उद्बोधन था, जिसमें सभी मनुष्यों को निरन्तर चेतनशील और गतिशील रहने की शिक्षा निहित है। पानी में तब तक ही ताज़गी और शुद्धता रहती है जब तक वह बहता रहता है। पानी यदि बहना बन्द कर किसी एक स्थान पर एकत्र हो जाये तो वह सड़ जाता है। अशुद्ध हो जाता है। बहता पानी ही गुणकारी है, सड़ा हुआ पानी हानिकारक होता है। वैसे ही वैचारिक जड़ता भी हितकारी नहीं है। कोई विचार अन्तिम नहीं है। नये विचारों के पैदा होने की सम्भावना सदैव रहती है। विचारों को समय के अनुकूल तथा मानव-हितकारी होना चाहिए, इसी में उनकी सार्थकता है। किसी भी पड़ाव को अन्तिम मानकर रुको मत, अपने ज्ञान और चेतना के आलोक में निरन्तर आगे बढ़ते रहो और समाज को भी आगे बढ़ने का रास्ता दिखाते रहो। यह प्रत्येक मनुष्य के लिए एक सीख और आदर्श है। नाटक के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है कि बुद्ध होना देवत्व को प्राप्त करना नहीं है अपितु उच्च मानवीय चेतना से युक्त होना है, जहाँ पहुँचकर किसी के भी प्रति घृणा और शत्रुता का भाव नहीं रह जाता। मन हिंसा, असत्य, चोरी, लोभ-लालच, परिग्रह आदि विचारों से मुक्त हो जाता है तथा मन में ईर्ष्या, द्वेष, राग, तृष्णा, आसक्ति का जन्म नहीं होता। राग और आसक्ति से विरक्त मन अपना-पराया की भावना से ऊपर उठ केवल मानव-सुख और मानव कल्याण के बारे में विचार और कार्य करता है। सिद्धार्थ गौतम ने मानव को दुखों से मुक्त कर सुखी बनाने के लिए कठिन साधना की और बुद्ध बनने के पश्चात् जीवनपर्यन्त गाँव-गाँव, नगर-नगर घूमकर मानव जीवन को दुःख-मुक्त और सुखी बनाने की शिक्षा दी। इसलिए गौतम बुद्ध ईश्वर, ईश्वर के अवतार या देवता नहीं, अपितु महामानव हैं। —भूमिका से
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