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100 _aSharma, Sunil kumar
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245 _aTeergi mein roshani
260 _aNew Delhi
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520 _aबदले हो तुम तो इसमें क्या हैरत है देख रहा हूँ रोज़ बदलती दुनिया को’ बाहर की रोज़ बदलती दुनिया को तो हर कोई देख रहा है लेकिन कोई-कोई ही अन्दर की बदलती-जलती दुनिया को देख पाता है। ‘बाहर की जलती दुनिया को छोड़ो भी देखो मेरे अन्दर जलती दुनिया को’ और अपने अन्दर की बदलती-जलती दुनिया को देखने वाला जब नामी इंजीनियर हो तो ये मानना ही पड़ता है कि वो नामी इंजीनियर एक कामयाब शायर भी है। नामी इंजीनियर और कामयाब शायर डॉ. सुनील कुमार शर्मा का ये पहला ग़ज़ल-संग्रह है ‘तीरगी में रौशनी’। लेकिन इस संग्रह की कुछ ग़ज़लें पढ़ने के बाद ये कहना पड़ता है कि सुनील जी अपने पहले ही संग्रह में पूरी तैयारी के साथ आये हैं। ‘ग़ौर से देखेंगे तो फ़र्क़ दिखाई देगा इश्क़-मुहब्बत, हुस्नपरस्ती एक नहीं’ सुनील जी ने आज की इस बदलती दुनिया को गौर से देखा है और क्लासकी अन्दाज़ की इस कहन को मेहनत से साधा है। हिन्दी-ग़ज़ल में अधिकतर कवि गीत-धारा से आते हैं लेकिन सुनील जी कविता से ग़ज़ल में दाख़िल हुए हैं और इसके लिए उन्होंने ग़ज़ल की बुनियादी बारीकियों का भरपूर अध्ययन किया है जो उनकी शायरी में उभर-उभरकर आया है। ‘ये अश्क आँखों में लिये दिल कह रहे थे अलविदा हो रही थी बात आख़िर आख़िरी दोनों तरफ़ तीरगी में रौशनी थी रौशनी में तीरगी हो रही थी कुछ न कुछ जादूगरी दोनों तरफ़’ मैं ‘तीरगी में रौशनी’ के शायर का स्वागत करता हूँ, बधाई देता हूँ और कामना करता हूँ कि उनका शे'री सफ़र यूँ ही जारी रहे। मुझे पूरी उम्मीद है कि वो जल्द ही शे'र-ओ-सुख़न की दुनिया में अपनी मंज़िल और मुक़ाम हासिल करेंगे। ‘अपनी मंज़िल को पा कर दिखलाऊँगा मेरा रास्ता काट के चलती दुनिया को’ —राजेश रेड्डी ★★★ भारतीय ग़ज़लाकाश में सुनील कुमार शर्मा नामक एक और नक्षत्र नमूदार हुआ है, जिसकी ग़ज़लें अपनी जगमगाहट से अदबी दुनिया को रोशन करेंगी और ग़ज़ल-प्रेमी पाठकों को आकर्षित करेंगी। दुनियावी चकाचौंध में जीवन-जगत् के तमाम आकर्षणों से दिग्भ्रमित इन्सान, अक्सर यह भी भूल जाता है कि आख़िर उसे चाहिए क्या? शायर ने कितनी सहजता और दृढ़ता से दो मिसरों में इस ऊहापोह को स्पष्ट कर दिया है— ‘मुझे पहले यूँ लगता था, सहारा चाहिए मुझको मगर अब जा के समझा हूँ किनारा चाहिए मुझको’ बहर, कथ्य और कहन की दृष्टि से परिपक्व सुनील कुमार शर्मा की इन ग़ज़लों की गूँज अदबी दुनिया में बहुत दूर और देर तक क़ायम रहेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। ‘तीरगी में रौशनी’ की इन ग़ज़लों में एक ओर जहाँ रवायती अन्दाज़ के कई शे'र अपने पूरे आबो- ताब के साथ नुमाया हैं— ‘अश्क आँखों में लिये दिल कह रहे थे अलविदा हो रही थी बात आख़िर आख़िरी दोनों तरफ़’ तो वहीं दूसरी ओर शायर ने अपने पहले ही प्रयास में अपने जज़्बातो-अहसासात को नये बिम्बों, प्रतीकों और शब्दों के माध्यम से व्यक्त करने में सफलता प्राप्त कर ली है— ‘ग्रीन टी, म्यूज़िक, किताबें, क़िस्से, शेरो-शायरी, जो तुम्हारे शौक़ थे, वो शौक़ मेरे हो गए।‘ ‘तीरगी में रौशनी’ के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई। अल्लाह करे ज़ोर-ए-क़लम और ज़ियादा। —दीक्षित दनकौरी ★★★ शायरी अपने अहद की सच्ची तस्वीर होती है, शायरी दिलों की वो आवाज़ है जो एक दिल से दूसरे दिल तक पहुँचती है। दो मिसरों में बात कहना हालाँकि बड़ा मुश्किल काम है लेकिन ग़ज़ल की ख़ूबसूरती भी यही है। किसी भी मौजू पर कोई भी शे'र यूँ ही नहीं कह दिया जाता, उसके लिए उस माहौल से गुज़रना भी उतना ही ज़रूरी होता है और डॉ. सुनील कुमार शर्मा की शायरी में ये बात झलकती है।
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