000 | 01479nam a22002057a 4500 | ||
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003 | OSt | ||
005 | 20241214132105.0 | ||
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020 | _a9789357756686 | ||
040 | _cAACR-II | ||
082 | _aH 891.431 SEN | ||
100 |
_aSen, Kshitimohan _98101 |
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245 | _aKabir | ||
260 |
_aNew Delhi _bVani _c2024 |
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300 | _a311p. | ||
520 | _aकबीर की रचनाओं और जीवन की आलोचना करने पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि उन्होंने भारतवर्ष की समस्त बाह्य कुरीतियों को भेदकर उसके अन्तर की श्रेष्ठ सामग्री को ही भारतवर्ष की सत्य-साधना के रूप में उपलब्ध किया था; इसलिए उनके पन्थी को भारतपन्थी कहा गया है। विपुल विक्षिप्तता और असंलग्नता के मध्य भारत किस निभृत सत्य में प्रतिष्ठित है, ध्यानयोग के द्वारा इसे वे सुस्पष्ट रूप से देख पाये थे | ||
650 |
_aHindi Literature _98102 |
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650 |
_aCollection of Poetries- Hindi _98103 |
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942 |
_2ddc _cB |
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999 |
_c357424 _d357424 |