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082 | _aH NAG A | ||
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_aNagar, Achala _96544 |
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245 | _aAmrit lal nagar ki babuji-betaji and company | ||
260 |
_aNew Delhi _bVani _c2024 |
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300 | _a123p. | ||
520 | _aनिकाह', 'आख़िर क्यों', 'बाग़बान' और 'बाबुल' समेत कोई तीन दर्जन हिट फ़िल्मों व दो दर्जन धारावाहिकों की पटकथा तथा संवाद लेखिका एवं कथाकार साहित्य भूषण डॉ. अचला नागर द्वारा बीसवीं शताब्दी के मूर्धन्य भारतीय उपन्यासकार और अपने पिता अमृतलाल नागर के सम्बन्ध में लिखे संस्मरणों की अनुपम कृति है- बाबूजी-बेटाजी एंड कम्पनी। इसमें उन्होंने पिता के संग जिये विविध काल-खण्डों को अत्यन्त सजीवता से उकेरा है। कथाकार, नाटककार, नाट्य-निर्देशक, मंच एवं रेडियो की प्रतिभाशाली अभिनेत्री अचला नागर विगत लगभग 30 वर्षों से बॉलीवुड से तो जुड़ी हैं ही, कदाचित् वह फ़िल्म उद्योग की इनी-गिनी लेखिकाओं में हैं, जिन्होंने कद्दावर पुरुषों द्वारा संचालित फ़िल्मोद्योग के दुर्ग को भेदकर वहाँ 'निकाह' के ज़रिये न केवल अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करायी है वरन् साल-दर-साल क़ायम अपने सम्मानजनक स्थान को बरक़रार भी किये हुए हैं। ये संस्मरण शिल्प की दृष्टि से लीक से हटकर हैं। दरअसल ऐसा लगता है, मानो ये संस्मरण न होकर किसी फ़िल्म के 'रश प्रिंट' (रशेज़) हों। ज़ाहिर है, एक कुशल पटकथाकार होने के नाते इन संस्मरणों में उनकी क़लम कैमरे की आँख की तरह चली है; लिखने के बजाय उन्होंने सुन्दर वृत्तचित्र शूट किये हैं। कहीं विहंगम दृश्य को अपना कैमरा 'पैन' करते हुए वे 'लांग शॉट' से 'मिड शॉट' और 'क्लोज़अप' में अंकित करती चली आती हैं, कहीं 'मोन्ताज' का प्रयोग करती हैं तो कहीं कुशलतापूर्वक 'मिक्स' और 'डिज़ॉल्व' भी कर देती हैं। बतरस से पगी यह पुस्तक पाठक को आरम्भ से अन्त तक बाँधकर एक साँस में पढ़ जाने को विवश करती है। | ||
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