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082 _aH MOD P
100 _aModiano, Patrick
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245 _aEk Yahoodi ladki ki talash
260 _aNew Delhi
_bRajkamal
_c2023
300 _a157p.
520 _aडोरा ब्रूडर, उम्र पन्द्रह साल, यहूदी। स्कूल के रजिस्टर में उसके नाम के आगे ‘जाने की तारीख़ और कारण’ का सिर्फ़ यह विवरण मिलता है : ‘14 दिसम्बर, 1941; शिष्या भाग गई है।’ यह उपन्यास उसी की तलाश की कहानी है जिसे लेखक लगभग पाँच दशक बाद पेरिस पर जर्मन क़ब्ज़े के बचे-खुचे दस्तावेज़ों में करता है। कड़ी से कड़ी जुड़ती जाती है, और अन्त में पता चलता है कि स्कूल से निकलने के बाद वह जर्मनों की पकड़ में आ गई, और उसे आउशवित्ज़ के लिए रवाना कर दिया गया जहाँ एक पूरी क़ौम को ख़त्म करने के लिए नाज़ियों ने तमाम अमानवीय इन्तज़ाम कर रखे थे। डोरा ब्रूडर इस उपन्यास की मुख्य पात्र है, लेकिन असल नायक वह माहौल है जो पेरिस पर जर्मन क़ब्ज़े के बाद वहाँ पैदा हुआ, और जिसे लेखक ने अत्यन्त कौशल के साथ यहाँ पुन:सृजित किया है। एक ऐसा दौर जब अनेक मनुष्यों के लिए न सूरज के पास रोशनी बची थी, न आकाश के पास हवा, न घर उन्हें छिपा पाते थे, न सड़कें कहीं पहुँचा पाती थीं। उन्हें कभी भी कहीं भी पकड़ा जा सकता था, उनके लिए नियम बन गए थे, जो उन्हें उनके ही जैसे मनुष्यों के बीच कम-मनुष्य बनाते थे। उन्हें निर्धारित समय पर निकलना था, निर्धारित इलाक़ों में रहना था, निर्धारित बसों में चलना था, और हर समय अपनी पहचान को ज़ाहिर रखना था। दिसम्बर की बर्फ़ीली रात में निकली डोरा के साथ कब क्या हुआ, कब वह कहाँ रही, यह खोजते हुए जैसे-जैसे लेखक आगे बढ़ता है इस माहौल की भयावहता हमारे सामने साकार होती जाती है, हम भीतर से ठंडे और सुन्न पड़ते जाते हैं और सहसा चौंककर अपने आज के वातावरण को देखने लगते हैं...
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