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082 | _aH TRI S | ||
100 |
_aTripathi, Suryakant _95586 |
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245 | _aApsara | ||
260 |
_aNew Delhi _bVani _c2024 |
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300 | _a171p. | ||
520 | _aअप्सरा ‘निराला’ की कथा–यात्रा का प्रथम सोपान है । अप्सरा–सी सुन्दर और कला–प्रेम में डूबी एक वीरांगना की यह कथा हमारे हृदय पर अमिट प्रभाव छोड़ती है । अपने व्यवसाय से उदासीन होकर वह अपना हृदय एक कलाकार को दे डालती है और नाना दुष्चक्रों का सामना करती हुई अंतत: अपनी पावनता को बनाए रख पाने में समर्थ होती है । इस प्रक्रिया में उसकी नारी–सुलभ कोमलताएँ तो उजागर होती ही हैं, उसकी चारित्रिक दृढ़ता भी प्रेरणाप्रद हो उठती है । इस उपन्यास में तत्कालीन भारतीय परिवेश और स्वाधिनता–प्रेमी युवा–वर्ग की दृढ़ संकल्पित मानसिकता का चित्रण हुआ है, जो कि महाप्राण निराला की सामाजिक प्रतिबद्धता का एक ज्वलंत उदाहरण है । | ||
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