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520 _aनील दर्पण - प्रख्यात बांग्ला नाटककार दीनबन्धु मित्र रचित नील दर्पण यद्यपि एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण नाट्यकृति है, जो अपने समय का एक सशक्त दस्तावेज़ भी है। 1860 में जब यह प्रकाशित हुआ था, तब बंगाली समाज और अंग्रेज़ शासक दोनों में तीव्र प्रतिक्रिया हुई थी। एक ओर बंगाली समाज ने इसका स्वागत किया तो दूसरी ओर अंग्रेज़ शासक इससे तिलमिला उठे। चर्च मिशनरी सोसायटी के पादरी रेवरेंड जेम्स लॉग ने नील दर्पण का अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित किया तो अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें एक माह की जेल की सज़ा सुनायी । बांग्ला में नील दर्पण का प्रदर्शन पहले सार्वजनिक टिकट-बिक्री से मंच पर 1872 में हुआ, तो जहाँ एक ओर दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी, वहीं दूसरी ओर अंग्रेजी अखबारों ने उसकी तीखी आलोचना की। ऐसे नाटकों की विद्रोही भावना के दमन हेतु अंग्रेज सरकार ने 1876 में 'ड्रेमेटिक परफ़ॉर्मन्सेज़ कन्ट्रोल ऐक्ट' जारी किया । अंग्रेज सरकार द्वारा रेवरेंड जेम्स लॉग पर चलाया गया मुकदमा ऐतिहासिक और रोमांचक है। नेमिचन्द्र जैन के नील दर्पण के रूपान्तर के साथ ही उस मुकदमे का पूरा विवरण पाठकों को दमन और विद्रोह का दस्तावेज़ी परिचय देगा । भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित यह ऐतिहासिक कृति और दस्तावेज़ पाठकों को समर्पित है।
650 _aHindi play
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700 _aTranslated by Nemi Chandra Jain
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