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082 _aH 891.431 SHA
245 _aShahryar suno
250 _a4th ed.
260 _aNew Delhi
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300 _a191p.
440 _aRastrabharti/ lokodya Granthmala
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520 _aशहरयार सुनो... हिन्दुस्तानी अदब में शहरयार वो नाम है जिसने छठे दशक की शुरुआत में शायरी के साथ उर्दू अदब की दुनिया में अपना सफ़र शुरू किया। शहरयार मानवीय मूल्यों को सबसे ऊपर मानते हैं। वे दो टूक लहजे में कहते हैं कि हिन्दी और उर्दू अदब के मक़सद अलग नहीं हो सकते। शहरयार को अपनी सभ्यता, इतिहास, भाषा और धर्म से बेहद लगाव है, लेकिन इनका धर्म संस्कृति को जानने का एक रास्ता है और संस्कृति व समाज की आत्मा को पहचाने बिना शायरी नहीं की जा सकती। शहरयार की शायरी में एक अन्दरूनी सन्नाटा है। फ़ैज़ की साफ़बयानी और फ़िराक़ की गहरी तनक़ीदी और तहज़ीबी कोशिश को उनसे कतरा करके भी शहरयार ने उन्हीं की तरह, लेकिन उनसे अलग वो इशारे पैदा किये हैं जो कविता के इशारे होते हुए भी इनसान के बेचैन इशारे बन जाते हैं- 'ग़मे जाना' के साथ-साथ 'ग़मे दौराँ' के इशारे। शहरयार की ख़ूबी यही है कि उनकी रचना का चेहरा निहायत व्यक्तिगत है, लेकिन उसमें झाँकिए तो अपना और फिर धीरे-धीरे वक़्त का चेहरा झाँकने लगता है। शहरयार ने काल्पनिक सृजन-संसार की बजाय दुनिया की असलियत को ग़ज़लों के लिए चुना है। उनकी शायरी में आज के शहरी जीवन और औद्योगिक विकास के बीच गिरते इनसानी मूल्यों को लेकर बेहद चिन्ता है। शहरयार ग़ज़ल और नज़्म के आज बेहद लोकप्रिय और बुलन्दपाया शायर हैं। शहरयार ने तरह-तरह और नये से नये अन्दाज़ में अपनी बात कही है। शायर की इसी छटपटाहट के तहत उनकी शायरी ने जो करवटें बदली हैं, उसमें पुरानी सलवटें नहीं हैं। - कमलेश्वर
650 _aLiterature- Hindi; Mazms/ Ghazals; ; Gulzar ed.; Jnanpith awarded
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