000 | 01812nam a22002057a 4500 | ||
---|---|---|---|
003 | OSt | ||
005 | 20240212091657.0 | ||
008 | 240212b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9788126330805 | ||
040 | _cAACR-II | ||
082 | _aH 891.432 KAR | ||
100 |
_aKarnad, Girish _9738 |
||
245 | _aNagmandal (Kannad play) | ||
250 | _a9th ed. | ||
260 |
_aNew Delhi _bJnanpith _c2022 |
||
300 | _a78p. | ||
520 | _aनागमण्डल - गिरीश कार्नाड का बहुचर्चित नाटक 'नागमण्डल' दक्षिण भारत में प्रचलित लोक-कथा पर आधारित है। भारतीय आख्यानों में नाग का इच्छित रूप धारण कर लेना एक जनप्रिय एवं रोचक कथावस्तु रही है। इस नाटक में कार्नाड ने नाग को पुरुष के विकृत भावों का प्रतीक मानकर नारी के असहाय-बोध को उजागर किया है। पति-पत्नी की मानसिकता और बढ़ते हुए निरन्तर अन्तर्द्वन्द्व को बड़े नाटकीय एवं तर्कसंगत ढंग से प्रस्तुत किया गया है। अभिनय और संवाद की दृष्टि से गिरीश कार्नाड का यह नाटक बहुत सफल माना गया है। " | ||
650 |
_aHindi Literature; Play- Kannad; Kannad Natak; Jnanpith Pruskar prapt kriti; Narayan, B. R. Tr. _9739 |
||
942 |
_2ddc _cB |
||
999 |
_c354529 _d354529 |