000 01879nam a22002057a 4500
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020 _a9788170557999
040 _cAACR-II
082 _aH JOS M
100 _aJoshi, Manohar Shyam
_9734
245 _aKyap
250 _a4th ed.
260 _aNew Delhi
_bVani
_c2021
300 _a151p.
520 _aक्याप’- मायने कुछ अजीब, अनगढ़, अनदेखा-सा और अप्रत्याशित। जोशी जी के विलक्षण गद्य में कही गयी यह ‘फसक’ (गप) उस अनदेखे को अप्रत्याशित ढंग से दिखाती है, जिसे देखते रहने के आदी बन गये हम जिसका मतलब पूछना और बूझना भूल चले हैं... अपने समाज की आधी-अधूरी आधुनिकता और बौद्धिकों की अधकचरी उत्तर-आधुनिकता से जानलेवा ढंग से टकराती प्रेम कथा की यह ‘क्याप’ बदलाव में सपनों की दारुण परिणति को कुछ ऐसे ढंग से पाठक तक पहुँचाती है कि पढ़ते-पढ़ते मुस्कराते रहने वाला पाठक एकाएक खुद से पूछ बैठे कि ‘अरे! ये पलकें क्यों भीग गयीं।’ -पुरुषोत्तम अग्रवाल
650 _aNovel- Hindi; Upanyas; Fiction- Hindi; Sahitiya Akadmi Pruskar prapt kriti
_9735
942 _2ddc
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999 _c354527
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