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_bSHA
100 _aSharma, Seema
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260 _aDelhi :
_bJahanvi ,
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300 _a84p.
520 _aकभी-कभी प्राकृतिक विपदायें मनुष्य को तोड़कर रख देती हैं। वह प्रकृति के हाथ की कठपुतली है। किन्तु वह विपदाओं को टाल नहीं सकता और उसे विपदायें सहन करनी ही पड़ती हैं। आँधी, तूफान सबके थपेड़े आदमी को सहने पड़ते हैं। लेकिन आखिर आदमी करे तो करे क्या ? वह ईश्वर तो है नहीं कि परिस्थितियों को अपने वश में कर ले। वह तो चुनौतियों का सामना करता है, कभी हारता है, कभी जीतता है। कभी आशावान होता है कभी निराशा का शिकार होता है। वह सदैव ही आशा और निराशा रूपी झूले में झूलता रहता है। शेक्सपीयर ने मनुष्य के इसी संघर्ष को झंझावत नाटक में चित्रित किया है
700 _aSharma, M.L.
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_cB
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