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005 20230501193243.0
020 _a9788170281870
082 _aH 181.4
_bRAD
100 _aRadhakrishnan
245 _aBhartiya darshan
260 _aDelhi
_bRajpal & sons
_c2022.
300 _a600 p.
500 _aThis book is divided into 2 sections- Frist Section- Vaidik yug se bauddh kaal tak Second Section-Hndu dharma punarjaagaran se vartamaan tak
520 _aप्रस्तुत ग्रंथ प्रख्यात भारतीय दार्शनिक तथा पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन् के विश्वविख्यात ग्रंथ इंडियन फिलॉसफ़ी का प्रामाणिक अनुवाद है। उसका यह प्रथम खंड है। इस ग्रंथ की संसार के सभी विद्वानों तथा दार्शनिकों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। इसमें भारतीय दर्शन जैसे गूढ़ और व्यापक विषय का जिस आकर्षक और ललित शैली में और साथ ही जिस प्रामाणिकता और तुलनात्मक अध्ययनपूर्वक विवेचन किया गया है, वह अद्वितीय है। प्रस्तुत खंड में भारतीय दर्शन के आरंभिक वैदिक काल से लेकर बौद्ध काल तक के ऐतिहासिक विकास का विवेचन करते हुए विद्वान लेखक ने दर्शन की प्रमुख धाराओं, विविध धर्म-परम्पराओं और भारत के अपने विशिष्ट आध्यात्मिक विचार की विस्तृत, स्पष्ट और युक्तियुक्त व्याख्या की है तथा आरम्भ से अन्त तक पाश्चात्य दर्शन के सन्दर्भ में तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया है । भारतीय दर्शन (2) डॉ. राधाकृष्णन् के महत्त्वपूर्ण दर्शन-ग्रंथ इंडियन फिलॉसफी के दूसरे खंड का अनुवाद है। इस विद्वतापूर्ण ग्रंथ में लेखक ने बौद्धकाल के अंतिम चरण अर्थात् हिन्दू-धर्म-पुनर्जागरण काल से आज तक के भारतीय दर्शन के विकास की विशद विवेचना और अध्ययन प्रस्तुत किया है। विशेषतः षड्दर्शन के छहों अंगों पर मध्ययुग के पहले और बाद के हिन्दू धर्म के व्याख्याताओं की स्थापनाएँ यहाँ प्रतिपादित हुई हैं। इन मनीषियों की स्थापनाओं की दार्शनिक विशिष्टताओं को विश्व के अन्यान्य दार्शनिकों के मतों की तुलना में रखते हुए लेखक ने भारतीय धर्म और दर्शन की वैज्ञानिकता और जीवन के साथ उनकी संगति को बहुत ही उदात्त और निष्पक्ष रूप से दर्शाया है। पुस्तक के अंतिम अंश में संपूर्ण दर्शन वाङ्मय पर लेखक के समन्वयात्मक विचार प्रस्तुत हुए हैं।
650 _aPresident of India
650 _aDr. Rajinder Prasad
650 _aVedic Age to Buddhist Period
650 _aPhilosophy, Indic
650 _aHindu philosophy
700 _aGobhil, Nandhkishor(tr.)
942 _cB