000 | 03837nam a2200157Ia 4500 | ||
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999 |
_c34770 _d34770 |
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005 | 20220801121842.0 | ||
008 | 200202s9999 xx 000 0 und d | ||
082 | _aH 342 SHI | ||
100 | _aShirivastav, Shivdayal Parmeshwardayal | ||
245 | 0 | _aSamvidhan aur vidihiya | |
260 |
_aBhopal _bMadhya Pradesh Hindi academy _c1974 |
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300 | _a792p. | ||
520 | _aस्वतंत्र चिन्तन और सृजनात्मक प्रतिभा का विकास सच्चे अर्थ में तब तक सम्भव नहीं जब तक सभी स्तरों पर मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा नहीं दी जाती भारतीय मानस और मेधा अपने परिवेश और आवश्यकताओं की अनुरूपता में तब तक नयी दिशाओं का संधान नहीं कर सकेगी जब तक यह विदेशी भाषा में अन्तनिहित संस्कारों से मुक्त नहीं होती। राष्ट्रीय चरित्र का भावबोध अपनी भाषाथों के माध्यम से निश्चय ही अधिक प्रभावशाली हो सकेगा। इस तथ्य को अनुभव के स्तर पर स्वीकार करने के बाद से भारतीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने के सतत प्रयास किये जाते रहे हैं। इनकी सफलता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बी--- पाठ्य-पुस्तकों का अभाव। इस अभाव को दूर करने के लिए एक विशाल योजना और दृढ निश्चय की आवश्यकता थी। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने इसी उद्देश्य से विश्व विद्यालयीन ग्रन्थ-निर्माण योजना के अन्तर्गत प्रत्येक राज्य को एक-एक करोड़ रु० का वित्तीय अनुदान देकर अकादमियों की स्थापना की प्रेरणा दी। इसी क्रम में मध्यप्रदेश में भी जुलाई १६६६ में हिन्दी ग्रन्थ एकादमी की स्थापना हुई । विगत चार वर्षों में अकादमी ने विज्ञान, तकनीकी, कृषि तथा मानविकी के विभिन्न विषयों में डेढ़ सौ से भी अधिक मौलिक तथा अनुवाद-ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं। इनमें स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं के विद्यार्थियों की आवश्यकता एवं पाठ्यक्रम की अनुरूपता का ध्यान रखा गया है। प्रकाशनों में केन्द्रीय शब्दावली प्रयोग द्वारा तैयार की गयी मानक शब्दावली समान रूप से प्रयुक्त हुई है। | ||
650 | _aConstitution and the law | ||
942 |
_cB _2ddc |