000 05172nam a2200193Ia 4500
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005 20220831123026.0
008 200202s9999 xx 000 0 und d
082 _aH 491.4307 ABH
100 _aAbhilashi, Krishnanandan Prasad
245 0 _aHindi adhyapan
245 0 _nv.1984
250 _a1st ed.
260 _aPatna
260 _bBihar Hindi Grantha Academy
260 _c1984
300 _a423 p.
520 _aप्रस्तुत ग्रंथ 'हिन्दी अध्यापन' हमारे वर्षों के कठिन परिश्रम का प्रतिफल है। यद्यपि बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी ने हिंदी शिक्षण विधि पर एक मौलिक ग्रंथ लिखने का आदेश 25 अक्तूबर, सन् 1972 को मुझे दिया किंतु इस ग्रंथ में कुछ ऐसी सामग्रियों का समावेश हुआ है जिनका संचालन इस आदेश के बहुत पूर्व ही हमारे अध्ययन और अभ्यास से हुआ था। इसके प्रणवन में तीन वर्ष अतिरिक्त लग गए। यह ग्रंथ दो खंडों में विभाजित है। प्रथम खंड का शीर्षक है- हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि । इसके अतंर्गत भाषा की परिभाषाएँ, उसका स्वरूप, उसकी विशेषताएँ तथा विकास क्रम के साथ-साथ हिंदी भाषा और उसकी उपयोगिताएं बतायी गयी है। इसके अतिरिक्त, लेखन कला की आवश्यकता, उसका आविष्कार, विभिन्न लिपियों का जन्म तथा देवनागरी लिपि की उत्पत्ति और विकास क्रम की चर्चा भी की गयी है। यह खंड प्रधानतः संद्धांतिक है और इसका संबंध भाषा तथा भाषा विज्ञान से है दूसरे खंड का शीर्षक है-हिंदी शिक्षण की प्रणालियों इसके अंतर्गत शब्दोच्चारण, श्रवण, लेखन तथा पठन की विधियों का विवेचन हुआ है। साथ ही हिंदी साहित्य की विविध विधाओं कहानी; नाटक, रचना, व्याकरण, कविता, आदि की शिक्षण-प्रणालियाँ बतायी गयी हैं। वर्ण विन्यास, परीक्षण, विधि एवं मूल्यांकन का विवेचन भी यहाँ हुआ है। ग्रंथ की भाषा को यथासंभव सरल एवं सुबोध रखने का प्रयत्न किया गया है। वर्ण्य विषय को विश्लेषणात्मक एवं विवेचनात्मक शैली में उपस्थित करने की चेष्टा हुई है। अध्येयताओं के लिए ग्रंथ अधिकतम उपयोगी सिद्ध हो, इसका पूरा ध्यान रखा गया है। इस ग्रंथ के प्रणयन का बहुत सारा श्रेय बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी के भूतपूर्व निदेशक डॉ. शिवनन्दन प्रसाद जी को है जिन्होंने इसकी योजना को स्वीकार कर इसके लेखन कार्य की अनुमति प्रदान की तथा समय-समय पर इसे पूरा करने की प्रेरणा हमें दी अकादमी के पूर्ववर्ती अध्यक्ष की देवेन्द्रताथ शर्माजी का भी मैं बहुत आभारी हूँ जिन्होंने इसकी लिपि को देखकर इसमें यत्र-तत्र सुधार के बहुमूल्य सुझाव दिये। प्रकाशन पदाधिकारी ठाकुर यदुवंश नारायण सिंहजी का भी में ऋणी हूँ जिन्होंने इस ग्रंथ का उद्धार किया है।
942 _cB
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