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082 _aH 891.43 GHI
100 _aGhildyal, Uma
245 _aMain nirvaasit nhi
260 _aUttrakhand
_bCommunication
_c2018
300 _a575 p.
520 _aराम एवं सीता एक दूसरे के पर्याय हैं। राम का वर्णन यदि करने बैठे तो सीता अपरिहार्य हो जाती है। सीता की उदातता, सौन्दर्य एवं जीवनी शक्ति भी राम के बिना अपूर्ण हो जाती है। इसीलिए जब भी कोई विचारक, लेखक, रचनाकार, इन पर कुछ लिखना चाहता है तो दोनों ही अपनी-अपनी अनिवार्यता के साथ प्रकट हो जाते हैं। इसी प्राकट्य को नाम दिया गया है-"मैं निर्वासिता नहीं"।
650 _aNirvaasit
942 _cB