000 | 01648nam a22001697a 4500 | ||
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999 |
_c347044 _d347044 |
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003 | 0 | ||
005 | 20220921105957.0 | ||
020 | _a9789386871541 | ||
082 |
_aH 891.4303 _bJOS |
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100 | _aJoshi, Sachchidanand | ||
245 | _aKuchh alpa viraam | ||
260 |
_aNew Delhi _bVidya vihar _c2018 |
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300 | _a144 p. | ||
520 | _a‘कुछ अल्प विराम’ को साहित्य की किसी एक विधा के खाँचे में डालकर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि यह विधाओं की परिधि को तोड़कर जिंदगी की सच्चाई से सीधा संबंध जोड़ती है। इसमें जीवन के उन सभी छोटे-बड़े प्रसंगों को इकट्ठा करने की कोशिश की है, जो गुदगुदाते हैं, हँसाते हैं, रुलाते हैं, कभी हल्की सी चपत लगाते हैं और कभी चिकोटी काट लेते हैं। सबकुछ उतना ही जितना जरूरी है, हमें हमारी असमय नींद या तंद्रा से जगाने के लिए काफी है। कभी लघुकथा के माध्यम से, तो कभी किस्से के माध्यम से और कभी-कभी संस्मरण के माध्यम से। | ||
650 | _aShort stories | ||
942 | _cDB |