000 04728nam a22001817a 4500
999 _c347020
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005 20220907153614.0
020 _a9789383980116
082 _aH 891.43
_bSHR
100 _aShrivastav, Jaya
245 _aNirala ke sahitya mein pragatisheelata ke aayam
250 _a1st ed.
260 _aNew Delhi
_bShivank Prakashan
_c2022
300 _a186 p.
520 _aकुछ लोग मानते हैं कि प्रगतिवाद का उदय छायावाद की प्रतिक्रिया में हुआ था। नगर यह सही नहीं है। प्रगतिवाद का उदय छायावाद के समांतर हुआ था, उसके विरोध में नहीं बल्कि अयावाद के भीतर से ही प्रगतिवाद के अंखाए फूटे थे। पंत की परवर्ती और निराला की अनेक कविताएं इसका प्रमाण है। कुछ लोग प्रगतिवाद का प्रस्थान निराला की कविताओं से मानते है, तो कुछ इसकी छाया पंत की परवर्ती कविताओं- ग्राम्या जैसे संग्रहों से ही देखने लगते है। दरअसल, प्रगतिशील क चेतना है, जो समय की स्थितियों के अनुसार विकसित हुई। दूसरे महायुद्ध के बाद दुनिया के औपनिवेशिक मुल्कों में औद्योगीकरण और बाजार के विस्तार कोड शुरू हुई, उससे न सिर्फ मानव श्रम का शोषण शुरू हुआ, बल्कि आधुनिकीकरण थोपने के दुश्चक्रों के चलते मानव-जीवन की नैसर्गिक स्थितयों में भी तेजी से बदलाव दिखाई देने लगा। वैयक्तिकता को प्रव मिला। ऐसी स्थिति में कोमलकांत पदावली की रचनाओं को स्वाभाविक रूप से प्रति किया जाने लगा, उन्हें संदेह की नजर से देखा जाने लगा। विद्रोह का स्वर अधिक आकर्षित करने लगा। इन्ही परिस्थितियो नेता की कविताएं एवं थी। निराला में वह स्वर अधिक मुखर रूप में उभरा। इसलिए तर लोग हिंदी में वेतन के • उभार की सीमारेखा निराला से खीचना शुरू करते। हैं। जया श्रीवास्तवने प्रगतिशील चेतना के विकास केक विवेचन करते हुए, उनके पूरवर्ती कवियों से लेकर निराला के समय की स्थितियों तक का बहुत बारीकी से अध्ययन किया है। इस पुस्तक को पढ़ते हुए कई बार चकित होना पड़ता है कि आज जब शोध की स्थितियों पर बातें करते हुए असर रोकिय जाता है कि शोध में आवश्यक श्रम नहीं किया जा रहा है यह किताब उसका प्रतिकार करती है। निराला की प्रगतिशील चेतना को समझने के लिए जितने भी जरूरी उपकरण हो सकते हैं, सैद्धांतिक उपादान हो सकते है, जया श्रीवास्तव ने वह सब इस पुस्तक में इस्तेमाल किया है। निस्संदेह यह पुस्तक निराला को समझने में बहुत उपयोगी है।
650 _a Literature - Social aspect
942 _cB