000 | 03210nam a22001697a 4500 | ||
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999 |
_c346884 _d346884 |
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003 | 0 | ||
005 | 20220812174143.0 | ||
020 | _a9788194971351 | ||
082 |
_aH 891.4301 _bMIS |
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100 | _aMishra, Kamalakar | ||
245 | _aMaa : kawita sangrah | ||
260 |
_aDelhi _bShivank prakashan _c2022. |
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300 | _a123 p. | ||
520 | _aप्रस्तुत काव्य संग्रह का शीर्षक संकलित प्रथम पांच छह कविताओं के आधार पर ही दिया गया है। इस संकलन में माँ को समर्पित कुल ६ कविताओं में जिनमे माँ के त्याग, बच्चों को बड़ा करने में उठाये गए कष्टों, एवं अंत में रुग्ण होकर विवशता की स्थिति में माँ को देख कर व्यथित मन की भावनाओं को उकेरने का प्रयास हुआ है! प्रकृति हमें बहुत कुछ देती रहती है जिसका उपयोग एवं उपभोग हम बिना किसी प्रतिफल की भावना के करते जाते है। ये विचार तो दुर्लभ मष्तिष्को में ही आता होगा कि जो कुछ हम उपभोग कर रहे हैं वो हमें उपलब्ध कहाँ से हो रहा है ? स्रोत क्या है ? हमारा उस स्रोत में योगदान क्या है ? मनुष्य जितना ही स्वार्थी यदि प्रकृति बन जाए तो क्या होगा ? जो बर्ताव हम वृक्षों, नदियों के साथ करते है अगर वो ही बर्ताव हमारे साथ होता है तो हम क्या बर्दाश्त कर पाते है ? क्या हम तब भी निःस्वार्थ कुछ देने की सोच पाते है ? पूरी तरह तो नहीं लेकिन कुछ हद तक प्रयास किया गया है कि अपनी इन्हीं भावनाओं को प्रश्न बनाकर समाज के सामने रखा जाए और उसका उत्तर स्वयं ढूंढा जाए। इसमें संकलित मेरी कुल ७५ कविताओं में माँ, पिता, प्रकृति, प्रेम, देश, नेता, मित्र, स्मृतियाँ, समाज एवं संबंधों के विषय में अपनी अनुभूतियों को प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी है। | ||
650 | _aHindi poetry collection | ||
942 | _cB |