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020 _a9788186810676
082 _aH 891.43
_bKHA
100 _aKhan, Shama.
245 _aKuch kaale kuch ujle panne : kaidiyon ki dastaane
250 _a1st ed.
260 _aDehradun
_bSamay Sakshay
_c2015
300 _a128 p.
520 _aशमा खान की रचनाओं से गुजरते हुए मुझे खलील जिब्रान की कालजयी कहानी 'कब्रों का विलाप' का स्मरण हो आया जिसमें इन्साफ की गद्दी पर बैठा अमीर सामन्त घटनाओं की तफ्सील में जाए बिना एक खूबसूरत हट्टे-कट्टे नौजवान का सिर कलम करने का, एक बहुत सुंदर कोमलांगी को ‘संगसार’ करने और एक अधेड़ उम्र के कमज़ोर आदमी को ऊंचे पेड़ से लटकाने का हुक्म देता है, जिब्रान ने सवाल उठाए हैं: "वे कौन थे जिन्होंने चोर को दरख़्त पर लटकाया ? क्या आसमान से रिश्ते उतरे थे या वे वही इंसान थे जो हाथ आए माल को हड़प लेते हैं? और उस क़ातिल का सिर जिसने कलम किया था? और उस व्यभिचारिणी को किसने संगसार किया ? क्या उस काम के लिए पाक रूहें अपने स्थानों से आई थीं ? क्या वे वही लोग थे जो अंधेरे के पर्दे में बुरे काम किया करते हैं ?"
650 _aJail Stories
942 _cB