000 07471nam a22001577a 4500
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005 20220711181917.0
082 _aRJ 320.540922 RAJ
100 _aRajesthan rajya abhilekhakar
245 _aRajasthan swadhinta sangram k sakshi : kuch sansmaran Udaipur, Dungarpur ,Banswara
260 _aBikaner
_bRajesthan rajya abhilekhakar
_c1995.
300 _a274 p.
520 _aअभिलेखागारीय कार्य-पद्धति के अन्तर्गत मौखिक इतिहास सन्दर्भ-संकलन – माध्यम रूप में एक सर्वथा नवीन आयाम है जिसके अन्तर्गत राजपूताना परिक्षेत्र की भिन्न-भिन्न रियासतों में गतिशील रहे जन-आन्दोलनों में सहभागी व्यक्तियों के संस्मरण उनकी स्वयं की वर्ण्य विधा-रूप में उन्हीं की आवाज़ में ध्वनिवद्ध किये गए हैं। पूर्व निदेशक श्री जे. के. जैन ने अपने कार्यकाल में यह परियोजना प्रारम्भ करवाई थी और गत पन्द्रह-सोलह वर्षों से यह आज भी गतिशील है। योजना का उद्देश्य यह था कि एक इकाई रूप में व्यक्ति–क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को सम्पादित करें और उनकी विवरणात्मकता स्थानीय गतिविधियों का महत्त्व दर्शायें तथा वैचारिक स्तर पर राष्ट्रीय धारा से इन आन्दोलनों के जुड़ाव एवं एकमयता भी स्पष्ट रूप से उजागर हो। एक दृष्टिकोण रूप में यह कार्य जितना सहज एवं सरल दीख पड़ता था, अपनी व्यावहारिक कार्यविधि में यह उतना ही कठिन रूप से सामने आया। क्योंकि योजना का केन्द्र 'व्यक्ति को ही रखा गया था अतः सही सन्दर्भ रूप में व्यक्ति की तलाश इस परियोजना की प्राथमिक आवश्यकता रही। कुछ अंशों में अवस्था प्रदत्त शारीरिक क्षीणताएं यथा विस्मृति भी व्यवधान रहे। फिर भी इन संस्मरणों के संकलन में गत साठ-सत्तर वर्षों के जो तथ्यात्मक सन्दर्भ मिले हैं वे पूर्णतः प्रामाणिक एवं असंदिग्ध सूत्र हैं ऐसा माने जाने में कोई आपत्ति नहीं। उनका यह कथ्य व्यक्तिगत साक्ष्य-सापेक्ष है जिसकी प्रामाणिकता परियोजना के दूसरे चरण में अभिलेखागार की उनकी पत्रावलियों में उनके अभिस्वीकृत हस्ताक्षर रूप में उपलब्ध है। अभिलेखागार मात्र उसका संकलनकर्ता ही है। यद्यपि अभिलेखागार में संकलित विभिन्न अभिलेख शृंखलाओं में तत्कालीन रियासती आन्दोलनों के सन्दर्भ बहुलता से उपलब्ध हैं किन्तु आज वे एकपक्षीय हैं - अधूरे हैं, यदि दूसरा पक्ष जो कि इन आन्दोलनों का संचालन पक्ष है और स्पष्ट रूप जन-भागीदारी का पक्ष है, को स्पष्ट करने के लिए ही यह सन्दर्भ-संकलन परियोजना प्रारम्भ की गई थी। जन आन्दोलन ग्रंथमाला नामक यह एक क्रमबद्ध प्रकाशन शृंखला है जिसमें तत्कालीन सभी रियासतों को शामिल किया गया है। यह इस प्रकाशन की स्वाभाविक सीमा ही मानी जानी चाहिए कि इसके प्रारम्भ किये जाने से पूर्व जो सन्दर्भ कालकवलित हो चुके वे इसमें नहीं हैं लेकिन उनकी 'शेष स्मृति' की निरन्तरता इन संस्मरणों में ज्ञापित होती रहे – संकलन प्रक्रिया में इस तथ्य का विशेष ध्यान रखा गया है और जो उपस्थित होते हुए किन्हीं अपरिहार्य कारणों से संकलन क्रम में नहीं आ सके उन्हें आगामी शृंखला-क्रम में शामिल किया जाये यह प्रयास रहेगा। इस परियोजना में मेरे जिन विभागीय सहयोगियों सर्वश्री बृजलाल विश्नोई पूर्व उप निदेशक, गिरिजाशंकर शर्मा सहायक निदेशक, कृष्णचन्द्र शर्मा शोध अध्येता एवं मोहम्मद शफी उस्ता स्टेनो ने परियोजना की संकलन प्रक्रिया में ध्वन्यांकन से लेकर इसे पुस्तक रूप में प्रकाशित किये जाने तक अपनी सूझबूझ, धैर्य एवं कार्यकुशलता का जो परिचय दिया है वह प्रशंसनीय एवं सराहनीय है। यह पुस्तक राजस्थान के आधुनिक काल के इतिहास लेखन के लिए एक सन्दर्भ पुस्तक की भूमिका का सफल निर्वाह करेगी I
650 _aRajesthan, India
942 _cDB