000 | 11709nam a22001937a 4500 | ||
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_c346809 _d346809 |
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005 | 20220711180613.0 | ||
020 | _a9788190921954 | ||
082 | _aRJ 320.540922 RAJ | ||
100 | _aKhargawat, Mahendra (ed.) | ||
245 | _aRajasthan swadhinta sangram ke sakshi: sawtntrta senaniyo k sansmaran pr aadharit | ||
260 |
_aBikaner _bRajesthan rajya abhilekhakar _c2011. |
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300 | _a180 p. | ||
520 | _a प्रस्तुत पुस्तक में जयपुर अंचल के 31 स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरण प्रस्तुत किए गए हैं। ये संस्मरण में सम्बन्धित स्वतंत्रता सेनानी की अपनी विचारधारा या दृष्टिकोण है। इनका प्राप्त इतिहास में ऐक्य या वैभिन्त्य से विभाग का कोई सरोकार नहीं है। हाँ, तथ्य एकीकृत करने, घटनागत सामंजस्य बैठाने, पुनरावृत्ति हटाने और क्रमबद्धता की दृष्टि से कहीं-कहीं इन्हें आगे-पीछे किया गया है या भाषागत सुधारा गया है। कई संस्मरणों के विस्तार का भी संक्षिप्तीकरण किया गया है। चूँकि ये संस्मरण आपसी वार्ता में हैं, अतः सेनानियों के संस्मरणों में एक घटना बताते समय दूसरी घटना याद आ जाना, विस्मृति या लम्बा अन्तराल आदि कारणों से संस्मरणों में तारतम्यता का अभाव वा भाषागत उतार-चढ़ाव आना आदि स्वाभाविक था। पुस्तक रूप में प्रकाशित करने के लिए यत्किंचित् यह प्रयास आवश्यक था। किन्तु सेनानियों के विचार और भावनाओं से किसी प्रकार की छेडछाड़ नहीं की गई है। अभिलेखागार इन संस्मरणों का मात्र संकलनकर्ता है। प्रस्तुत पुस्तक स्वाधीनता संग्राम में जयपुर अंचल के योगदान पर प्रकाश डालती है। इतिहास साक्षी है। कि राजस्थान की तत्कालीन सभी रियासतों को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति से लेकर वृहद राजस्थान निर्माण तक अनेक कठिनाइयों से निरन्तर जूझना पड़ा। राजपूताने को सभी रियासतों के विराट एवं लघु जन आन्दोलन इसके प्रमाण है। यहां के सशक्त जन आन्दोलन भावी राजनैतिक आन्दोलन की आधारशिला बने। जयपुर अंचल के वीर सेनानियों ने भी स्वतंत्रता के इस यज्ञ में अपनी आहुतियां दी और सर्वस्व अर्पण कर अपने शौर्य, त्याग और बलिदान से नवीन इतिहास रचा। महान् देशभक्त श्री अर्जुनलाल सेठी ने सर्वप्रथम जयपुर की धरती पर क्रांति के बीज का वपन किया। उनके अजमेर चले जाने पर श्री कपूरचन्द पाटनों ने जयपुर में प्रजामण्डल की स्थापना करके जन-जाग्रति करने, वीरों को संगठित करने और ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया। उन्हीं दिनों श्री होरालाल शास्त्री ने जीवन कुटीर संस्था की स्थापना करके इसी उद्देश्य से कार्यकर्ताओं को संगठित एवं एकत्रित किया। सन् 1936-37 ई. में सेठ जमनालाल बजाज की प्रेरणा से जयपुर राज्य प्रजामण्डल का पुनर्गठन हुआ। तत्पश्चात् प्रजामण्डल के तत्त्वावधान में अनेक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा समय-समय पर जुलूस निकालना, विविध रूपों से जन-जाग्रति करना, सरकारी नीतियों का विरोध करना, सत्याग्रह करना, जेल की यातनाएं सहना और पैंफलेट बांटना आदि गतिविधियां गतिशील रहो। सन् 1942 ई. के आन्दोलन में जयपुर राज्य प्रजामण्डल की गतिविधियों से असंतुष्ट होकर बाबा हरिश्चन्द्र आदि स्वतंत्रता सेनानियों ने 'आज़ाद मोर्चा संघ की स्थापना की और इस मोर्चे के तत्त्वावधान में देश की स्वतंत्रता के लिए अतुलनीय साहसिक कार्य किए। कुछ अन्तराल के पश्चात् देशहित में दोनों दल पुनः एक हो गये। सन् 1947 ई. में भारत के स्वतंत्र होने के बाद रियासतों के बिलीनीकरण और एकीकृत राजस्थान के निर्माण में भी जयपुर के इन स्वतंत्रता सेनानियों ने कठिन संघर्ष किया। यहां अनेक आन्दोलन हुए, जो यहां के वीरों की गाथायें हैं। प्रस्तुत पुस्तक में संग्रहित जयपुर के स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरण तत्कालीन इतिहास को उजागर करते हुए कई अज्ञात एवं अनछुए प्रसंगों को भी उद्घाटित करते हैं। इनसे जो तथ्यात्मक संदर्भ प्राप्त हुए हैं, ये इतिहास और शोध की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी हैं। इस पुस्तक का सम्पादन डॉ. उपा गोस्वामी, पुरालेख अधिकारी (प्रतिनियुक्त) द्वारा अत्यन्त परिश्रम, धैर्य एवं निष्ठा से सीमित समय में किया गया है, जो अत्यन्त प्रशंसनीय है। राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानियों के संस्मरणों को उनकी आवाज में ध्वनिबद्ध करने की यह योजना पूर्व निदेशक श्री जे. के. जैन द्वारा प्रारंभ की गई। इसके क्रियान्वयन में श्री बृजलाल विश्नोई, डॉ. गिरजाशंकर, श्री कृष्णचन्द्र शर्मा और श्री मोहम्मद शफी आदि जिन व्यक्तियों ने कार्य किया, सभी धन्यवाद के पात्र हैं और उनका योगदान अनुकरणीय है। इनमें श्री मोहम्मद शफी का विशेष रूप से नाम लेना चाहूँगा, जिन्होंने संस्मरणों को ध्वनिबद्ध करने में तो अपना योगदान दिया ही, इन ध्वनिवद्ध संस्मरणों को लिपिबद्ध करने का अत्यन्त दुरु और जटिल कार्य भी अत्यन्त परिश्रम से किया। यह पुस्तक निश्चय ही शोध जगत् के साथ हमारी वर्तमान एवं आगामी पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद रहेगी। वस्तुतः आज की युवा पीढ़ी, जो स्वतंत्रता संग्राम की उत्तराधिकारी है, देश की आज़ादी के विषय में अधिक ज्ञान नहीं रखती। वे अपने परिजन, पुस्तकें या टी.वी. आदि के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्ति के विषय में यत्किंचित ज्ञान रखते हैं। वे 15 अगस्त और 26 जनवरी को आज़ादी दिवस मनाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। हम प्रतिवर्ष आज़ादी के वर्षों में वृद्धि करते हैं, परन्तु ये उत्तराधिकारी स्वयं को इससे न तो संयुक्त कर पाते हैं और न ही इस संवेदना का अनुभव कर रहे हैं। यह पुस्तक इनके अन्दर निश्चय हो देशप्रेम की भावना जाग्रत कर सकेगी। | ||
650 | _aRajesthan, India | ||
650 | _aFreedom struggle | ||
700 | _aGoswami, Usha (ed.) | ||
942 | _cDB |