000 01765nam a22001697a 4500
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003 0
005 20220606180751.0
020 _a9789388165778
082 _aUK BHA M
100 _aBhatt, Manoj
245 _aGhera: katha sangrah
260 _aDehradun
_bSamay sakshay
_c2020
300 _a100 p.
520 _aवर्तमान दौर मा घेरा कु स्वरूप भी बदलेगी, बचपन मा व्वै बाप हमतें घिरादां छा, कबरी खेल्युं मा दगड्या • घिरादां छा त कबरी हम गोरु तँ घिरादां छा कबरी कबरी त जंगळ मा जंगळी जानवरों त वि घिरादां छा, पर आज कथगा हि तरों का घेरा छन, कुछ लोग कैक घेरा मा छन त कुछ लोग अपड़ा हि घेरा मा घिरयां छन, मि बोलु कि वू अपड़ा हि घेरा मा फस्यां छन, कवारी त पता वि नि चलदु कि हम जाण बुझी बिना सोच्यां समझयां के घेरा मा घरै ग्यां अब सुख चैन छोड़ी तै वै घेरा बिटी निकळणा जतन मा लग्यां छा । इन्नी घेरा हमारी भाषा गढ़वळि दगिड़ बिच, ज्वा आठवीं अनुसूची मा आण से पैलि कधगै घेरों मा धिरेगी।
650 _aFiction
942 _cB