000 02994nam a22001697a 4500
999 _c346658
_d346658
003 0
005 20220606165951.0
020 _a9879090743469
082 _aUK 891.4302 RAN
100 _aRanwalta, Mahabeer
245 _aTeen pauranik natak
260 _aDehradun
_bSamaya sakshay
_c2021
300 _a112 p.
520 _aसन् 1987 उत्तरकाशी, उत्तराखण्ड (अब उत्तर प्रदेश) में कुछ साथियों के साथ 'कला दर्पण' की स्थापना हुई, उन्हीं में से एक हैं हमारे आज के • वरिष्ठ साहित्यकार महावीर रवांल्टा। लेखक होने के अतिरिक्त महावीर जी के कुछ दूसरे पहलुओं को भी मैं साझा करना चाहूँगा। जब-तब उन्होंने मेरी अनेक नाट्य प्रस्तुतियों में अपने दूसरे रंग भी बिखेरे हैं। अस्सी के दशक में 'कला दर्पण' की डॉ. गोविन्द चातक कृत 'काला मुँह' नाट्य प्रस्तुति में उनकी संयोजक की भूमिका रही। यही साल था जब मेरा पहली मर्तबा उनके घर महरगाँव जाना हुआ तब उनके अनूठे नेतृत्व में 'कला दर्पण' बैनर तले 'सत्यवादी हरिश्चन्द्र', 'मौत का कारण', 'जीतू बगडवाल' एवं 'साजिश' नाटकों का सफल मंचन हुआ। साहित्य कला परिषद से पुरस्कृत डॉ. गोविन्द चातक के 'बाँसुरी बजती रही' के फिल्मांकन से पहले उन्होंने मेरे साथ पैदल जाकर सुदूर गाँवों का लोकेशन के चयन के लिए भ्रमण किया। 'बांसुरी बजती रही' अस्सी के दशक में केबिल के माध्यम से टीवी पर टेलीकास्ट किया गया था। केबिल के जरिए स्थानीय कलाकारों को टीवी पर देखना लोगों को चमकृत कर गया और कलाकारों को रातोंरात अपने स्टार सेलिब्रेटी होने का सा अहसास हुआ था।
650 _aDrama
942 _cB