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020 | _a978-93-86452-93-1 | ||
082 | _aH DIM S | ||
100 | _aDimari, Satish | ||
245 | _aKoi apna sa | ||
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_aDehradun _bSamya sakshya _c2018. |
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300 | _a150 p. | ||
520 | _aघटनाओं का क्या? घटनाएँ घटती रही और में लिखता रहा, ऐसा कोई उद्देश्य भी नहीं था लिखना, लेकिन कुछ घटनाएँ ऐसी हो जाती, जो हृदय की गहराइयों में समा जाती और शब्दरूप में स्फूटित होकर निकलती। साहित्य अपने समय की कहता है। लिखना तब प्रारम्भ हुआ जब चारों तरफ अंधकार, आशा की कोई किरण नहीं, कोई रास्ता नहीं, इन जर्जर रास्तों से निकलने का कोई समाधान नहीं। जब सब रास्ते बन्द हो जाते हैं, तब एक छोटी सी 'ली' मनमस्तिष्क में जलती हुई नजर आती है। यही लो जीवन को जीवंत रखे हुए है। बस मेरी ये लेखनी भी उसी का परिणाम है। इस लौ ने कहा ये पल अभिशाप नहीं बल्कि एक वरदान है। इन पलों को समेट लो, जाने मत दो और शब्दों में पिरो दो! वही कार्य उस लौ ने किया और शब्दरूपी पुंज ने शब्दों का एक वृक्ष तैयार किया। युवा जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें में स्वयं को भी देखता हूँ। आधुनिक युवा का संघर्ष समग्र नहीं है, इसका संघर्ष खुद के लिए है फिर भी स्वयं में झूलता हुआ दिखाई देता है। स्कूल/कॉलेज की शिक्षा के बाद हर युवा की समस्या है- दिशा और रोजगार, रोजगार प्राप्ति के बाद रोजगार के प्रति अपने आपको संतुष्ट रख पाना। उसके संघर्ष प्रारम्भ होते हैं, तब उसे लगता है। विकास का नाम ही तो संघर्ष है, जो संघर्ष करेगा वो प्रकृति के नियमों का सही पालन करेगा और एक सच्चा मनुष्य होने का परिचय देगा। फिर अपने आपको व्यवस्थित रखना सबसे बड़ा काम है। इस पुस्तक में हर एक युवा के मन की बात को संग्रह करने की कोशिश की। युवा सबसे अधिक विचलित तब होता है, जब उसके अनुरूप उसे कार्य नहीं मिल पाता। इसी के साथ बुजुर्ग मन तब आहत होता है, जब उसकी उपेक्षा की जाती है, लेकिन वहीं अपने वृद्ध होते शरीर पर ध्यान न देकर अपने कर्मक्षेत्र को सर्वोपरि मानता है तो सारी वृद्धता भी एक तरफ हो जाती, जो कि वृद्ध होने के साथ-साथ अपने अनुभव से इस समाज को सिंचित करता है और उसका लाभ समाज को मिलता है। फिर देखा जाय तो आज जिस प्रकार समाज से रिश्तों का, संस्कारों का, शिक्षा के महत्व और प्रभाव का लोप हो सकता है, उसको बचाये रखना भी समाज के सामने एक चुनौती है। इसी प्रकार आधुनिकता को ग्रहण कर अपनी उस भूमिका का निर्वहन कर, उस भूमिका के अन्तर्गत, जिस भूमिका में रहकर यो अपनी उच्चता को दर्शायेगा तो बात ही कुछ और हो जाती है। सबसे अधिक त्रासदी उत्तराखण्ड केदारनाथ में आयी। इस सदी की सबसे बड़ी आपदाओं में से एक त्रासदी ने हर एक त्रस्त किया। गाँव के गाँव बाढ़ के ग्रास बन गये, समस्त रोजगार छिन गया, सारे घर, खेत-खलियान जलमग्न हो गये। आखिर उनकी मनोदशा किस प्रकार की रही होगी, जिन्होंने अपनों को खो दिया। चारों तरफ निराशा अपनों को खोने की, जो कभी न लौटने की है। लेकिन एक आशा है। कि क्या पता कहीं हो! और लौट आयें। एक आशा जो जीने का आधार बन जाये तो एक सुखद अनुभूति जीवन में उतर आती है। | ||
650 | _aFiction | ||
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