000 | 03940nam a22001697a 4500 | ||
---|---|---|---|
999 |
_c346517 _d346517 |
||
003 | 0 | ||
005 | 20220430205158.0 | ||
020 | _a9788195003778 | ||
082 | _aH KAU P | ||
100 | _aKaur, Pritpal | ||
245 | _aSaal Chaurasi (84) | ||
260 |
_aDelhi _bVidhya _c2022 |
||
300 | _a184 p. | ||
520 | _a‘प्रितपाल कौर' का अगला उपन्यास 'साल चौरासी' की प्रकाशन पूर्व पांडुलिपि पढ़ने का अवसर मिला। जब 84 का आतंक दिल्ली पर नाजिल हुआ था तो मैं दिल्ली के सफदरजंग एनक्लेव में किराए के घर में रहता था। मेरे घर के आसपास सिखों पर आतंक बहुत ही भयानक था। प्रितपाल का उपन्यास दिल्ली की जिस भौगोलिक सीमा को केंद्र में रहकर लिखा गया है, वह सब मेरे उस घर के आसपास के ही मुहल्ले हैं। आर के पुरम, सरोजिनी नगर, धौलाकुआं के आसपास का खूनखराबा मैंने खुद देखा है। एक बार जब कंप्यूटर खोला तो करीब पौने दो सौ पृष्ठ की किताब पढ़कर ही उठा। दर्द का वर्णन करना आसान नहीं होता। लोग आगजनी और मौत के खून का विशद बयान करने लगते हैं। प्रितपाल ने प्रिंसिपल सोढ़ी की मौत का अहसास तो कराया लेकिन उनको मरते या जलते नहीं दिखाया, उनकी मौत का डिटेल नहीं दिखाया। हालांकि पूरे उपन्यास में उनकी मौत की दहशत दिलजीत कौर के झोले में संभाल कर रखी हुई पगड़ी, सोढ़ी साहब मौत के हश्र को भूलने नहीं देती। जब अपराधी लोग सोढी सर को कार से खींच रहे थे तो उनकी पगड़ी गिर गयी थी जिसको दिलजीत ने उठाकर अपने बैग में रख लिया था। जब उनको लगा कि उनको तो अपराधी मार ही डालेंगे तो उन्होंने बच्चों को भागने के लिए कहा। भागकार दिलजीत कौर और उसका भाई एक झाडी में छुप गए थे। वहीं से तनेजा साहब ने उनको बचाया और अपने घर लाये थे। उस काली रात को प्रितपाल ने ठीक वैसे ही अहसास कराया है जैसा कि मैंने आर के पुरम से बरास्ता रिंग रोड, सफदरजंग एन्केल्व की तरफ पैदल आते हुए देखा रास्ते में देखा था। मैं किसी काम से 31 अक्टूबर की शाम को सेक्टर 12 आर के पुरम अपने एक दोस्त के यहाँ गया हुआ था। | ||
650 | _aFiction | ||
942 | _cB |