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020 _a9788179758434
082 _aH 891.43 DEE
100 _aDeepak, Devendra
245 _aVah suraj: main surajmukhi
260 _aNew Delhi
_bAnamika
_c2020
300 _a191 p.
520 _aअध्ययन, अनुभव और सृजन की दीर्घयात्रा में मेरे समक्ष अनेक ऐसे महापुरुष आए हैं जो मेरे लिए सूरज थे और में उनकी विचार-विभूति का भोक्ता (उपभोक्ता नहीं) सूरजमुखी! स्वामी विवेकानंद, लाला लाजपतराय, सरदार वल्लभ भाई पटेल, वीर सावरकर, बाबा साहब अंबेडकर, लाल बहादुर शास्त्री, प. भवानी प्रसाद मिश्र, प. दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी अपने समय के सूरज थे। इनके व्यक्तित्व और कृतित्व के प्रति में सूरजमुखी की तरह उन्मुख रहा और मैंने उनसे वैचारिक ऊर्जा प्राप्त की। वह ऊर्जा संकलित रचनाओं में संप्रत्यक्ष है। पुस्तक में क्रम का आधार जन्मानुसार है। काल बोध की दृष्टि से भी यह आधार संगत है। ये सभी महापुरुष विभिन्न राष्ट्रीय और सामाजिक समस्याओं के विषय में समग्रता से सोचने के अभ्यासी थे। मेरा लेखक उसी दिशा का एक सजग न्यासी है। उपेक्षित और अलक्षित पात्र, वर्ग और विषय मेरी वरीयता में हैं। सामाजिक समरसता आज भारतीय समाज की पहली आवश्यकता है। इसलिए अस्पृश्यता का बिंदु कुछ अधिक विस्तार पा गया है। मुझे संतोष है कि वंचित समाज के सैकड़ों युवकों के विकास में में शब्द और कर्म दोनों स्तरों पर महती भूमिका निभा पाया। कुछ मित्र मेरी इस सन्नद्धता को 'सनक' मानते हैं। पुस्तक में संकलित लेख और कविताएं अलग-अलग समय में लिखी गई। इसलिए कहीं-कहीं तथ्य और कथ्य की आवृत्ति भी हुई है, जो स्वाभाविक है। रचनाएं पूर्व प्रकाशित हैं कई-कई पत्रों में कुछ का दूसरी भाषा में अनुवाद भी हुआ। यद्यपि पहले लेख का शीर्षक ही पुस्तक का शीर्षक है, तथापि सभी रचनाओं में केंद्रीयता का बिंदु यही है। इस पुस्तक में नौ सूरज है और में एक सूरजमुखी की तरह उनके साथ संयुक्त हूँ।
650 _aHindi literature
942 _cB