000 | 01942nam a22001697a 4500 | ||
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005 | 20220413155745.0 | ||
020 | _a9789392228124 | ||
082 | _aH 891.43802 GYA | ||
100 | _aGyanranjan | ||
245 | _aJaise amrood ki khushboo | ||
260 |
_aNoida _bSetu _c2021 |
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300 | _a256 p. | ||
520 | _aज्ञानरंजन हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार और सम्पादक रहे हैं। इनका रचनात्मक विवेक प्रखर और समष्टिमूलक रहा है। इस कारण ही हिन्दी के वरिष्ठ से लेकर युवा और युवतर रचनाकारों तक में उनका सम्मान है, उनसे संवाद रहा है। प्रस्तुत पुस्तक उस सम्मान और संवाद का ही पर्याय है। इसके पहले खण्ड में ज्ञानरंजन द्वारा समय-समय दिये गये साक्षात्कार, भाषण संकलित हैं तो दूसरे खण्ड में इनपर लिखे कुछ संस्मरण हैं। इस पुस्तक का संयोजन मनोहर बिल्लौरे ने किया है। ये ज्ञान जी के निकट रहे हैं। इन भाषणों और साक्षात्कारों में हमें जीवन और समाज को देखने का संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित दृष्टिकोण मिलता है। कई सूत्र जिनसे आगे की राहें खुल सकती हैं। | ||
650 | _aSansmaran | ||
942 | _cB |