000 | 02235nam a22001697a 4500 | ||
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999 |
_c346250 _d346250 |
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003 | 0 | ||
005 | 20220408181859.0 | ||
020 | _a9789391277581 | ||
082 | _aH 841 SIN | ||
100 | _aSingh, Madan Pal (Tr.) | ||
245 | _aKroor asha se vihval | ||
260 |
_aDelhi _bSetu _c2021 |
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300 | _a248 p. | ||
520 | _a1866 के दौरान चौबीस वर्ष की आयु में मालामें का उस संकट की अवस्था से सामना हुआ जिसके अवयव बुद्धि व शरीर दोनों ही थे। उस अवधि के दौरान लिखे एक पत्र में कवि ने अपने विचार प्रेषित किये कि 'मेरा गुज़र कर फिर पुनर्जन्म हुआ है। अब मेरे पास आत्मिक मंजूषा की महत्त्वपूर्ण कुंजी है। अब मेरा यह कर्तव्य है कि मैं अंतरात्मा को किसी बाह्य प्रभाव या मत की अपेक्षा उसी से खोलूँ।' स्पष्ट है कि इससे अन्य रचनाकारों की खींची लकीर व मीमांसा से बाहर निकलने का मार्ग बना। यह भी जाहिर है कि नयी वैचारिकी के आलोक में मौलिक, महान अतुलनीय कार्य हेतु अनुपम, अपारदर्शी शब्द योजना का संधान आवश्यक था। लेकिन नियति वही रही जो प्रत्येक साहित्यिक कीमियागर या स्वप्नद्रष्टा द्वारा महान रचना (magnum opus) का स्वप्न देखने पर होती है, यानी अपूर्णता से उत्पन्न संत्रास | | ||
650 | _aFrench literature | ||
942 | _cB |