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005 20220407190819.0
020 _a9788194172437
082 _aH DAB
100 _aDabral, Manglesh.
245 _aEk sadak ek jagah
260 _aDelhi
_bSetu Prakashan
_c2019
300 _a183 p.
520 _aइंटरनेट और संचार क्रांति के व्यापक विस्तार ने जब साहित्य, संस्कृति और विभिन्न ज्ञानानुशासनों का संकुचन कर दिया है, जब हर शहर एक उँगली पर आभासी संसार में उपलब्ध है, तब यात्राओं की प्रासंगिकता का बदल जाना अवश्यंभावी है। ऐसे में यात्रा-वृत्तांतों का यात्रा संस्मरणों के रूप में कायांतरण भी स्वाभाविक है। यह पुस्तक यात्राओं की ऐसी ही स्मृति है। अनदेखी अनजानी जगहों के जो विवरण हैं, वे कवि मंगलेश डबराल की आकांक्षाओं के संदर्भ हैं। इसीलिए इन संस्मरणों में यात्री मंगलेश डबराल का सहयात्री कवि मंगलेश डबराल है। इसे हम भाषा, तथ्य चयन, स्मृति संचयन सबमें देख सकते हैं। ये वृत्तांत उन खिड़कियों की तरह हैं जिनकी मार्फत हम ऐसे सफर पर निकलते हैं जहाँ हर कदम पर एक दुनिया उजागर होती है। यह जगहों और कविताओं के अभिन्न रूप से जुड़े हुए होने की दुनिया है। ये संस्मरण देश-विदेश की यात्राओं से उद्भूत हैं, जो ज्यादातर कविता पाठों के सिलसिले में हुई हैं। इन संस्मरणों में बहुत खास है मंगलेश डबराल की भाषा । वे जिस जगह की यात्रा करते हैं, उसके वृत्तांत को सिरे से गायब नहीं होने देते, पर वे वृत्तांत स्मृतियों के लिए खाद-पानी सरीखे होते हैं। ये स्मृतियाँ जब भाषा में उतरती हैं तो दुहरी चुनौती का सामना करती हैं। एक स्तर पर वे लेखक की काव्यात्मक क्षमता से ओतप्रोत हैं तो दूसरे स्तर पर कवितापन से बाहर आना विधा की सर्जनात्मक अनिवार्यता हैं। द्वित्वों के बीच संतुलित भाषा ने इन संस्मरणों की आंतरिक लय का निर्माण किया है, उसे गति दी है। यह गति ऐसी है कि हम नदी में नहा कर निकलते हैं तो उसके बहाव को शरीर पर थोड़ी देर बाहर आकर भी महसूस करते हैं।
650 _aFiction
942 _cB