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_bKAT
100 _aKatara , Pannalaal
245 _aJanajatiya bhugol
260 _aJaipur ,
_bParadise Publishers
_c2021
300 _a249 p.
520 _aजनजाति वह सामाजिक समुदाय है जो राज्य के विकास के पूर्व अस्तित्व में था या जो अब भी राज्य के बाहर है। जनजाति वास्तव में भारत के आदिवासियों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक वैधानिक पद है। भारत के संविधान में अनुसूचित जनजाति पद का प्रयोग हुआ है और इनके लिए विशेष प्रावधान लागू किये गये हैं। 1991 की जनगणना के अनुसार 6,77,58,380 भारत में जनजातियों की जनसंख्या है। इस अध्याय में यही प्रयास रहा है कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों की जनजातियों का भौगोलिक अध्ययन किया जाये। जैसे पूर्वोत्तर क्षेत्र से गारो, खासी, नागा, उडीसा से खोंड, बिहार से संथाल, हो, मध्यप्रदेश से गौंड, उत्तरप्रदेश से भोटिया, खस, थारू तथा बोक्सा, हिमाचल की किन्नौर जनजाति, गुजरात की डब्ला तथा दक्षिण भारत को इरुला तथा टोडा जनजातियों का संक्षिप्त में वर्णन किया गया है। भारत में लगभग 500 आदिवासी समूह विभिन्न प्रान्तों में निवास करते हैं। इनकी जनसंख्या किसी प्रान्त में अधिक, बहुत अधिक तो कहीं पर कम, बहुत कम है। कुछ प्रान्तों में तो आदिवासी दृष्टिगोचर ही नहीं होते हैं। इन आदिवासी समूहों में भील प्रान्तों समूह है। जनसंख्या की दृष्टि से हमारे देश में इनका तीसरा स्थान है। मध्यभारत में यह जनजाति मध्यप्रदेश एवं राजस्थान में बसी हुई है। राजस्थान के दक्षिणाचंल अर्थात् मेवाड़ प्रदेश में भीलों का बाहुल्य है। छठी शती में गुहिलोत जिन्होंने अपना यह नाम गोहा या गुहिल से लिया है, इंडर के भीलों के साथ रहते थे। इस वक्त इंडर पर जंगली नस्ल के भीलों के एक सरदार या राज्य था जिसका कि नाम मुन्डलिया था। बापा का जन्म गुहिल के बाद 8 वीं पीढ़ी में हुआ। छठी से ग्यारहवीं शताब्दी तक राजपूत राजाओं ने भीलों पर निरन्तर आक्रमण किये और इन्हें जंगलों में खदेड़ दिया। ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में मेवाड़ एवं मध्यभारत का उत्तर पश्चिमी क्षेत्र भीलों के के अधिकार में था। धीरे-धीरे इस क्षेत्र की राजपूत राजाओं ने भीलों से जीत लिया और उसके शासक बन बैठे। इस प्रकार भोल राजपूत राजाओं से परास्त होकर शासन विहीन हो जंगलों में सुरक्षित स्थानों में चले गये। भीलों का इतिहास बड़ा ही गौरवपूर्ण रहा है। इन्होंने सदैव राजपूत राजाओं की सहायता की एवं संकट के समय उनका सहयोग किया। इतना ही नहीं, कुछ भील मुखिया शासक भी बने। इनके नाम पर राज्य के कुछ नगरों व कस्बों के नाम भी पड़े। कोटा (कोट्या भील), बांसवाड़ा (बांसिया भील), डूंगरपुर (डूंगऱ्या भील), आदि इन्हीं के नाम पर बसे मिलते हैं। मीना, मैना मीणा, मेणा, मैणा-आदि नामों से सुप्रसिद्ध मीणा जाति का पूर्वकालीन इतिहास उतने ही अधिकार में है जितना अन्य आदिवासी जातियों का है। यह चर्चा करने से पहिले कि इस जाति के विषय में विभिन्न इतिहासकारों तथा नृवैज्ञानिकों की क्या धारणायें हैं, मीना (मीणा) शब्द की व्युत्पत्ति पर चर्चा करना समिचीन होगा। जहां राजस्थान के विभिन्न भागों में इसे मीणा, मेणा, मैणा नामों से पुकारा जाता है, वहीं राजस्थान के बाहर यह 'मीना' कह कर पुकारी जाती है। मीणा जाति के अनेक सुपठित व्यक्तियों की यह धारणा है कि इस जाति का सम्बन्ध भगवान् के मत्स्यावतार से है।
650 _aIndia ; Janajatiya bhugol
942 _cB