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082 |
_aH 330.954 _bKAT |
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100 | _aKatara , Pannalaal | ||
245 | _aArthika bhugol | ||
260 |
_aJaipur, _bParadise publisher _c2021 |
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300 | _a249 p. | ||
520 | _aआर्थिक भूगोल का उद्देश्य पूर्व में जीवन निर्वाह होता था। रेलों के बन जाने से किसानों के लिए अपनी पैदावर को दूर-दूर मण्डियों में भेजकर लाभ उठाना सम्भव हो गया। फलस्वरूप, किसान वे फसलें तैयार करने लगे जिनकी पैदावार से अधिकतम लाभ उठाया जा सके। परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के स्थान पर मण्डी की माँग को पूरा करने के उद्देश्य से फसलें तैयार की जाने लगीं। प्रत्येक किसान वह फसल तैयार करने लगा जिसके लिए उसका खेत सबसे अधिक उपयुक्त था। इससे आर्थिक भूगोल का वाणिज्यीकरण और फसलों का विशिष्टीकरण एवं स्थानीयकरण हो गया। बंगाल में जूट, उत्तर प्रदेश और बिहार में गन्ना, पंजाब और उत्तर प्रदेश में गेहूँ, मुम्बई में कपास, मद्रास में तिलहन और चावल अधिक पैदा किया जाने लगा। ग्रामीण लोग गाँव की ही बनी हुई वस्तुओं का उपभोग करते थे। केवल नमक और लोहा आदि कुछ वस्तुएँ ऐसी थीं जिनके लिए उन्हें बाहर वालों पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन रेलों के चलने से वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बाहर वालों पर अधिकाधिक निर्भर रहने लगे। बर्मा और मध्य-पूर्व का तेल, लंकाशायर और मैनचेस्टर के वस्त्र, जापानी खिलौने और वस्त्र, जर्मनी की सुइयाँ और उस्तरे रेलों के कारण गाँव-गाँव में पहुंचने लगे। गाँवों की आत्मनिर्भरता और पृथकत्व समाप्त हो गये। | ||
650 | _aEconomic geography ; Economic history | ||
942 | _cB |