000 | 02085nam a22001817a 4500 | ||
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999 |
_c343250 _d343250 |
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003 | 0 | ||
005 | 20201008063555.0 | ||
020 | _a9789387462342 | ||
082 |
_aH 891.433 _bCHA |
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100 | _aChaturvedi, Gyan | ||
245 | _aPagalkhana | ||
250 | _a2nd ed. | ||
260 |
_aNew Delhi _bRarakamal Prakashan _c2020 |
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300 | _a270 | ||
520 | _aज्ञान चतुर्वेदी का यह पाँचवाँ उपन्यास है। इसलिए उनके कथा-शिल्प या व्यंग्यकार के रूप में वह अपनी औपन्यासिक कृतियों को जो वाग-वैदग्ध्य, भाषिक, शाब्दिक तुर्शी, समाज और समय को देखने का एक आलोचनात्मक नज़रिया देते हैं, उसके बारे में अलग से कुछ कहने का कोई औचित्य नहीं है। हिन्दी के पाठक उनके 'नरक-यात्रा', 'बारामासी' और 'हम न मरब' जैसे उपन्यासों के आधार पर जानते हैं कि उन्होंने अपनी औपन्यासिक कृतियों में सिर्फ व्यंग्य का ठाठ खड़ा नहीं किया, न ही किसी भी $कीमत पर पाठक को हँसाकर अपना बनाने का प्रयास किया, उन्होंने व्यंग्य की नोक से अपने समाज और परिवेश के असल नाक-नक्श उकेरे। इस उपन्यास में भी वे यही कर रहे हैं। जैसा कि उन्होंने भूमिका में विस्तार से स्पष्ट किया है | ||
650 | _aHindi Fiction | ||
942 | _cB |