000 02844nam a2200181Ia 4500
999 _c32406
_d32406
005 20220831122640.0
008 200202s9999 xx 000 0 und d
082 _aH 491.4307 JAN c.3
100 _aRajgopal, N. V. (ed.)
245 0 _aJanjati bhashayen aur hindi shikshan
245 0 _nc.3
260 _aAgra
260 _bKendriya Hindi Sansthan
260 _c1980
300 _a282 p.
520 _aइस संगोष्ठी में शोध-पत्नों के लिए तीन विषय-क्षेत्र निश्चित किए गए थे; एक, जनजाति भाषाओं तथा हिंदी का व्यतिरेकी अध्ययन, दो, मातृभाषाओं के प्रभाव से उद्भूत भाषिक व्यापात एवं तीन, जनजाति भाषाभाषियों को हिंदी सिखाने की समस्याएँ। इसमें संकलित शोध पत्रों में प्रथम विषय की अधिक चर्चा हुई है यह स्वाभाविक है, क्योंकि अन्य दो विषयों के लिए भाषीय तुलना का आधार लेना जरूरी है। आशा की जाती है कि भविष्य में आयोजित होने वाली संगोष्ठियों में उपरिलिखित दूसरे और तीसरे विषय पर भी अधिक विवेचन और विश्लेषण होगा। इस संगोष्ठी में अरुणाचल, असम, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोउरम तथा मेघा लय की कई जनजाति भाषाओं की चर्चा की गई है, और कई अन्य ऐसी भाषाएँ रह भी गई है जिनकी चर्चा नहीं हुई है। संभवतः इसका यही कारण है कि इन भाषाओं के अध्ययन के लिए आवश्यक आधार सामग्री अभी तक संकलित नहीं की जा सकी है। वास्तव में पूर्वांचलीय भाषाक्षेत्र काफी सीमा तक अभी अछूता ही है। भाषा-ज्ञानिकों तथा हिंदी-भाषा-शिक्षकों के लिए इस क्षेत्र में शोध की प्रभूत सामग्री भरी पड़ी है।
942 _cB
_2ddc