000 | 02337nam a2200193Ia 4500 | ||
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999 |
_c29345 _d29345 |
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005 | 20221011121401.0 | ||
008 | 200202s9999 xx 000 0 und d | ||
082 | _aH 540 SAT | ||
100 | _aSatyaprakash | ||
245 | 0 | _aPrachin bharat mein rasayan ka vikas | |
245 | 0 | _nv.1968 | |
260 | _aVaranasi | ||
260 | _bSoochana Vibhag Uttar Pradesh | ||
260 | _c1960 | ||
300 | _a840p. | ||
520 | _aवेद के आविर्भाव के अनन्तर ही प्राचीन भारतीय आर्यों ने अनेक दृष्टिकोणों से सृष्टि को समझने का प्रयास किया, और उन्होंने इस प्रसंग में वेदांगों की रचना की। इन 6 वेदांगो में एक वेदांग कल्प है। इस कल्प के अन्तर्गत ही रसायन शास्त्र माना जा सकता है। भारतीय रसायन शास्त्र की परम्परा वैदिक संहिताओं की श्रुतियों से अनुप्रभावित है। प्रस्तुत ग्रन्थ- "प्राचीन भारत में रसायन का विकास" इस विषय का सांगोपांग अन्यन्त प्रामाणिक ग्रन्थ है। वैदिक ऋचाओं से लेकर चरक और सुश्रुत कालीन विशुद्ध आयुर्वेदिक परम्पराओं तक की रसायन सामग्री का संकलन इसमें है, और बाद के तंत्र साहित्य का भी नागार्जुन को साधारणतया भारतीय रसायन का जन्मदाता माना जाता है और उससे प्रेरित होकर अनेक तन्त्राचार्यों ने पारद, अभ्रक, माक्षिक (रसों और उपरसों) पर कार्य किया। | ||
650 | _aAncient India | ||
942 |
_cB _2ddc |