000 | 03036nam a2200169Ia 4500 | ||
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999 |
_c25731 _d25731 |
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005 | 20220802151047.0 | ||
008 | 200202s9999 xx 000 0 und d | ||
082 | _aH 491.25 IYE | ||
100 | _aIyenger, V. Krishna Swami | ||
245 | 0 | _aPaniniya vyakaran ki bhumika | |
260 | _aDelhi | ||
260 | _bPrabhat | ||
260 | _c1983 | ||
300 | _a178 p. | ||
520 | _aपाणिनि के व्याकरण पर कई विद्वानों ने आलोचनात्मक ढंग से विचार किया है। उनमें कात्यायन और पतंजलि के नाम प्रमुख हैं । सूत्रकार पाणिनि के समान ही इन दोनों व्याख्याकारों का भी महत्त्व है। इन तीनों को 'संस्कृत व्याकरण का मुनित्रय' कहा जाता है । सिद्धांत कौमदी के लेखक भट्टोजिदीक्षित ने 'मुनित्रयं नमस्कृत्य तदुक्तीः परिभाव्य च' कहकर इन्हीं मुनियों का स्मरण किया है। पश्चिम के भाषाविज्ञानी आज भी पाणिनि के अध्ययन में लगे हुए हैं। हम भारतीयों का कर्त्तव्य है कि विशेष रूप से पाणिनि के व्याकरण का सांगोपांग अध्ययन करें। उनकी विश्लेषण-पद्धति का रहस्य समझ सकें तो हम अन्य भाषाओं के – मुख्य रूप से सभी भारतीय भाषाओं के वैज्ञानिक व्याकरण तैयार करने में सफल हो सकेंगे । इस पुस्तक में पाणिनीय व्याकरण के संबंध में कुछ ऐसी बातों का विवेचन किया गया है जिन पर हिंदी में बहुत कम लिखा गया है। लेखक जानता है कि बहुत गंभीर और दुरूह है। इसलिए उसका यह दावा नहीं है कि यहां विषय के साथ पूर्ण न्याय किया गया है। लेखक का यह प्रयास तभी सफल माना जायगा जब अन्य विद्वानों को इससे प्रेरणा मिलेगी और वे इस विषय पर और भी अच्छे ग्रंथ हिंदी में लिखेंगे। | ||
942 |
_cB _2ddc |