000 01439nam a2200193Ia 4500
999 _c241860
_d241860
005 20221011144954.0
008 200213s9999 xx 000 0 und d
020 _a8170554098
082 _aCS 891.437 DHA
100 _aDhankwala, Jabbar
245 0 _aBadalon ka tabadalon se sambandh
260 _aNew Delhi
260 _bVani Prakashan
260 _c2012
300 _a130
520 _aहिन्दी व्यंग्य के समकालीन परिदृश्य में एक अजीब भभ्भड़ मचा हुआ है। व्यंग्य को एक अत्यंत सरल कार्य मान लिया गया है। लगभग बच्चों का खेल जैसा। एक घिसा-पिटा चुटकुला, व्याकरण तक को धता बताती पिटी सपाट भाषा और न जाने किसी पारलौकिक या वायवीय जीवन का साक्षात्कार कराती ऐसी रचना जिसमें न हास्य है, न विट, न लक्षणा-व्यंजना, न आयरनी, न बात को कहने का ढंग, फिर भी एक बालहठ-सी है कि व्यंग्य कहा जाये ।
650 _aVyang Sangrah
942 _cB
_2ddc