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082 _aH 327 KUD
100 _aKudesiya, Krishna.
245 0 _aViswa rajneeti mai Bharat
260 _aBhopal
260 _bMadhubun Educational Books
260 _c1772
300 _a340 p.
520 _aस्वतंत्रता के पूर्व दासता के युग में भारत न केवल विश्व रंगमंच पर वरन् स्वयं अपनी ही भूमि पर घटित घटनाओं का असहाय दर्शक बना रहा। परन्तु २०वीं शताब्दी का उत्तरार्ध भारतीय इतिहास में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से एक महान परिवर्तन लाया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के व्यक्तित्व का महत्त्व एवं उत्तरदायित्व दोनों बढ़ गये। सुदूर अतीत में अपनी संस्कृति एवं विद्या के बल पर भारत ने संसार में जो गौरव और महत्त्व प्राप्त कर रखा था वह फिर से उसे प्राप्त हुआ । भौगोलिक रूप से भारत पश्चिम एशिया, पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के केन्द्र में स्थित है। मध्य एशिया एवं दक्षिण-पूर्व एशिया को भारत ही मिलाता है। एशिया में कोई क्षेत्रीय संगठन बनाते समय भी भारत की अवहेलना नहीं की जा सकती। यहाँ यह स्मरणीय है कि भारत को स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात् से एशिया एवं अफ्रीका ही विश्व की राजनैतिक घटनाओं के मुख्य केन्द्र स्थल रहे हैं। यों तो एशिया ने विश्व के घटना चक्रों में सदैव ही महत्त्वपूर्ण भाग लिया है परन्तु पिछले ढाई सौ वर्षों में विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान की प्रगति के बल पर पश्चिमी देशों ने एशिया पर आधिपत्य जमा लिया। धीरे-धीरे यह काल भी बीत चला। एक लम्बे संघर्ष के पश्चात् भारत को एशिया में सर्वप्रथम स्वतंत्रता प्राप्ति का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसके बाद तो सम्पूर्ण एशिया में नव जागृति की लहर फैल गयी। सम्पूर्ण एशिया में स्वतंत्रता आन्दोलनों की जो बाढ़ आयी वह अभी तक समाप्त नहीं हुई है। भारत इस क्षेत्र में एक प्रकार से इन देशों का अगुआ बन गया। प्राचीन काल में भी भारत के विभिन्न एशियाई देशों के साथ सांस्कृतिक एवं राजनैतिक सम्बन्ध थे किन्तु विदेशी शासकों के काल में ये सम्बन्ध छिन्न-भिन्न हो गये थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् ये सम्बन्ध पुनर्जीवित किये गये। एशिया में भारत की महत्त्वपूर्ण स्थिति को महान अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियों को भी स्वीकार करना पड़ा।
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