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Avajna

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Vani Prakashan 2025Description: 300 pISBN:
  • 9789371129121
Subject(s): DDC classification:
  • H TOS S
Summary: अवज्ञा - 'अवज्ञा' का जापानी मूल नाम 'हकार्ई'। जापान के यथार्थवादी लेखकों में अग्रणी शिमाज़ाकि तोसोन का अधिक लोकप्रिय उपन्यास है। उस शती के उत्तरार्द्ध से लेकर बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध तक वह कालखण्ड है। जब आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप जापान के सामाजिक जीवन में, वहाँ के लोगों की चिन्तनधारा में काफ़ी परिवर्तन आ चुका था। समाज में प्रचलित जातिगत भेदभाव और विषमताओं को दूर करने के लिए हो रहे आन्दोलनों के इस दौर में वहाँ की सर्वाधिक हीन एवं अछूत मानी जाने वाली एक जाति 'एता' को बहुत संघर्ष करना पड़ा था। उपन्यास का कथानायक सेगावा उशिमात्सु भी जन्म से 'एता' है। उसकी पैदाइश की इस बात को छिपाने के लिए उसका पिता प्रयास करता है ताकि समाज के उच्चवर्गीय लोगों की तरह उसके बेटे को तरक़्क़ी का बराबर अवसर मिलता रहे। निधन के पहले ही वह अपने बेटे को आदेश दे गया था कि वह कभी अपनी जाति के रहस्य को प्रकट न होने देगा अन्यथा उच्चवर्गीय समाज से बहिष्कृत होकर वह अब तक अर्जित अपनी सम्पूर्ण प्रतिष्ठा खो बैठेगा और फिर कभी श्रेष्ठ एवं शान्तिपूर्ण जीवन नहीं जी सकेगा। लेकिन जातिगत हीनभावना और अन्तर्मन की पीड़ा उसे ऐसा करने से रोक नहीं पाती और एक दिन वह अपने पिता को दिये गये वचन की अवज्ञा कर अपनी जाति के रहस्य को खुलकर स्वीकार करता है। ऐसा करके ही वह अपने आपको पहचान पाता है और मानसिक व्यथा एवं घुटन से मुक्त होकर नवजीवन प्रारम्भ करने की आत्मशक्ति प्राप्त करता है। उपन्यास लिखने का तोसोन का उद्देश्य समाज में प्रचलित बुराई और अन्याय पर उँगली उठाकर दलित समाज के अधिकारों को जतलाना है। वास्तव में दलित जीवन से मुक्ति का यहाँ उतना महत्त्व नहीं जितना दलित वर्ग के आत्म-विश्लेषण का, उसके अहसास का है। जापानी साहित्य की यह मूल्यवान कृति हिन्दी पाठक-जगत को समर्पित करते हुए ज्ञानपीठ गौरव का अनुभव करता है।
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अवज्ञा - 'अवज्ञा' का जापानी मूल नाम 'हकार्ई'। जापान के यथार्थवादी लेखकों में अग्रणी शिमाज़ाकि तोसोन का अधिक लोकप्रिय उपन्यास है। उस शती के उत्तरार्द्ध से लेकर बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध तक वह कालखण्ड है। जब आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप जापान के सामाजिक जीवन में, वहाँ के लोगों की चिन्तनधारा में काफ़ी परिवर्तन आ चुका था। समाज में प्रचलित जातिगत भेदभाव और विषमताओं को दूर करने के लिए हो रहे आन्दोलनों के इस दौर में वहाँ की सर्वाधिक हीन एवं अछूत मानी जाने वाली एक जाति 'एता' को बहुत संघर्ष करना पड़ा था। उपन्यास का कथानायक सेगावा उशिमात्सु भी जन्म से 'एता' है। उसकी पैदाइश की इस बात को छिपाने के लिए उसका पिता प्रयास करता है ताकि समाज के उच्चवर्गीय लोगों की तरह उसके बेटे को तरक़्क़ी का बराबर अवसर मिलता रहे। निधन के पहले ही वह अपने बेटे को आदेश दे गया था कि वह कभी अपनी जाति के रहस्य को प्रकट न होने देगा अन्यथा उच्चवर्गीय समाज से बहिष्कृत होकर वह अब तक अर्जित अपनी सम्पूर्ण प्रतिष्ठा खो बैठेगा और फिर कभी श्रेष्ठ एवं शान्तिपूर्ण जीवन नहीं जी सकेगा। लेकिन जातिगत हीनभावना और अन्तर्मन की पीड़ा उसे ऐसा करने से रोक नहीं पाती और एक दिन वह अपने पिता को दिये गये वचन की अवज्ञा कर अपनी जाति के रहस्य को खुलकर स्वीकार करता है। ऐसा करके ही वह अपने आपको पहचान पाता है और मानसिक व्यथा एवं घुटन से मुक्त होकर नवजीवन प्रारम्भ करने की आत्मशक्ति प्राप्त करता है। उपन्यास लिखने का तोसोन का उद्देश्य समाज में प्रचलित बुराई और अन्याय पर उँगली उठाकर दलित समाज के अधिकारों को जतलाना है। वास्तव में दलित जीवन से मुक्ति का यहाँ उतना महत्त्व नहीं जितना दलित वर्ग के आत्म-विश्लेषण का, उसके अहसास का है। जापानी साहित्य की यह मूल्यवान कृति हिन्दी पाठक-जगत को समर्पित करते हुए ज्ञानपीठ गौरव का अनुभव करता है।

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